गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

राष्ट्रीय संग्रहालय को साल के अंत तक खाली करने का आदेश,

राष्ट्रीय संग्रहालय को साल के अंत तक खाली करने का आदेश
नया संग्रहालय 2025 तक के लिए निर्धारित नॉर्थ, साउथ ब्लॉक में नया म्यूजियम तैयार होने तक 2 लाख कलाकृतियां रखी जाएंगी - श्यामलाल यादव द्वारा लिखित

नई दिल्ली | अपडेट किया गया: 28 सितंबर, 2023 15:16 IST
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जनपथ, नई दिल्ली पर राष्ट्रीय संग्रहालय। 
राष्ट्रीय संग्रहालय साल के अंत तक शोधकर्ताओं के लिए बंद हो सकता है और इमारत को मार्च 2024 में ध्वस्त किए जाने की संभावना है। नया संग्रहालय, युग युगीन भारत, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक में बनेगा, जिसका कब्ज़ा संभवतः होगा मार्च 2025 तक संस्कृति मंत्रालय द्वारा लिया गया।
इंडियन एक्सप्रेस को पता चला है कि संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय संग्रहालय के अधिकारियों को इस साल के अंत तक जनपथ पर मौजूदा इमारत को खाली करने का प्रयास करने के लिए कहा है।
सूत्रों ने कहा कि यदि यह समयसीमा कायम रहती है, तो शोधकर्ता संग्रहालय के प्रदर्शनों तक नहीं पहुंच पाएंगे - यह 2.10 लाख से अधिक कलाकृतियों के संग्रह का लगभग 10 प्रतिशत प्रदर्शित करता है।
सूत्रों ने कहा कि संग्रहालय के अधिकारियों से कहा गया है कि उन्हें साल के अंत तक इमारत खाली कर देनी चाहिए ताकि अगले साल मार्च तक इसे ध्वस्त किया जा सके।

2 सितंबर को संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन के कार्यालय में संग्रहालय के अधिकारियों के साथ एक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि “भंडारण के लिए और राष्ट्रीय संग्रहालय के मौजूदा कर्मचारियों के लिए एक उपयुक्त स्थान की पहचान की जानी चाहिए जिसके लिए एक अंतरिक्ष सलाहकार या एक अंतरिक्ष मूल्यांकन कंपनी नियुक्त की जानी चाहिए।


उत्सव प्रस्ताव

बैठक में गोविंद मोहन के अलावा संस्कृति मंत्रालय के चार अधिकारी और राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक बी आर मणि सहित चार अधिकारी शामिल हुए।
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा संपर्क किए जाने पर मणि ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। गोविंद मोहन को भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिला।

अधिकारियों ने कहा कि संग्रहालय को स्थानांतरित करने के लिए जल्द से जल्द एक रोडमैप और एक कॉन्सेप्ट नोट तैयार किया जाना है। उन्होंने कहा कि वे संग्रहालय की वस्तुओं के भंडारण और मौजूदा संग्रहालय कर्मचारियों के लिए उपयुक्त स्थान की पहचान करने के लिए काम कर रहे हैं।
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संग्रहालय की कलाकृतियों को स्थानांतरित करना गंभीर कार्य है। संस्कृति मंत्रालय द्वारा 15 सितंबर 2014 को एक विशिष्ट दिशानिर्देश दिया गया है, जिसमें कहा गया है: “संग्रहालय की वस्तुओं का स्थानांतरण और परिवहन क्षेत्र में पेशेवर रूप से कुशल लोगों द्वारा किया जाना चाहिए, न कि अकुशल लोगों द्वारा… स्थानांतरण से पहले… विस्तृत स्थिति स्थिति रिपोर्ट देनी चाहिए संरक्षक से लिखित रूप में स्पष्ट राय लेने के बाद तैयार रहें कि वस्तु स्थानांतरित होने लायक है या नहीं।''

राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रागैतिहासिक काल से लेकर समकालीन युग तक की कलाकृतियाँ हैं। वे 5,000 से अधिक वर्षों की भारतीय कला और शिल्प कौशल का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसकी स्थापना 15 अगस्त, 1949 को राष्ट्रपति भवन में की गई थी और कलाकृतियों को पहली बार लंदन के बर्लिंगटन हाउस में प्रदर्शित किया गया था। जनपथ पर वर्तमान भवन 18 दिसंबर 1960 को खोला गया था।

शनिवार, 24 दिसंबर 2022

25 दिसम्बर मनुस्मृति दहन दिवस-

25 दिसम्बर मनुस्मृति दहन दिवस-

मनुस्मृति और मनु ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था का बेड़ा गर्क किया........



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25 दिसम्बर 1927 को बाबा साहब डा भीम राव अम्बेडकर जी ने हिन्दू धर्म के कथित कानून की किताब "मनुस्मृति" को सार्वजनिक तौर पर जलाने का काम किया था क्योकि इस मनुस्मृति के जरिये इस देश की 85 प्रतिशत आबादी को हजारों वर्षों तक पशुवत हांकने व ताड़ने का काम मनुवादियों द्वारा किया जाता रहा है।

       आज 25 दिसम्बर है।आज के दिन की प्रासंगिकता और भी बलवती हो जाती है क्योंकि आज भले ही बाबा साहब द्वारा लिखित भारतीय संविधान कार्यरूप में है लेकिन जिन लोगो को इसे क्रियान्वित करना है उनकी जेहन में आज भी मनुस्मृति के विकार भरे पड़े हैं।बाबा साहबने भी कहा था कि कानून चाहे जितना बेहतर हो लेकिन वह निर्भर उसको लागू करने वाले के नियत व सोच पर करेगा।

       बाबा साहब ने जिस मनुस्मृति को जलाया था वह आज के दौर में फीनिक्स की तरह जलने के बाद एक बार फिर जीवंत हो उठी है।हम सबको नए सिरे से मनुस्मृति व मनुवाद से लड़ने के लिए तैयार होना होगा।

      बाबा साहब डा भीम राव अम्बेडकर जी द्वारा 25 दिसम्बर 1927 को अंग्रेजी राज में मनुस्मृति जलाने के बाद देश की आजादी के 31 वर्ष बाद पुनः 14 अप्रैल 1978 से 30 अप्रैल 1978 के बीच अर्जक संघ ने महामना रामस्वरुप वर्मा जी के आह्वान व नेतृत्व में मनुस्मृति व रामायण का दहन किया था।आज पुनः मनुस्मृतिनुसार देश में राज करने की प्रबृत्ति सिर उठा रही है जिससे सभी पढ़े-लिखे समतावादियों को संघर्ष करना होगा।

       25 दिसम्बर मनुस्मृति दहन दिवस के बारे में जानने के बाद जब पत्नी सीता भूषण यादव जी द्वारा इस मनुस्मृति के सम्बंध में तफसील से जानने की जिज्ञासा प्रकट की गई तो मैने उन्हें तीन भिन्न-भिन्न प्रकाशनों द्वारा प्रकाशित "मनुस्मृति" सुपुर्द कर दी और उन्हें मोटामोटी मनुस्मृति के मुतल्लिक जानकारियां दे दी जिनमें कुछ प्रमुख

मनुस्मृति के भेदभावपूर्ण विधान निम्नवत हैं-

★जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो, उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नही है।

★राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें।

★जिस राजा के यहाँ शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है।

★ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है, मर्यादा है, लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है।

★नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे।

★ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है। इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है।

★यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए, क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है।

★यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है, जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है, तब दश अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए।

★निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए।

★ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है, वह है– गुणगान करते हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना।

★शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे, तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगबा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे।

★यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे तब राजा दोनों ओंठों पर पेशाब कर दे तब उसके लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे।

★यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए।

★इस पृथ्वी पर ब्राह्मण वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नही है। अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए।

★शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें।

★राजा बड़ी बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री, गृह शय्या, वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे।

★जानबूझ कर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक कुत्ते बिल्ली आदि पाप श्रेणियों में जन्म लेता है।

★ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।

★शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र, बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए।

★बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेंढक, कुत्ता, गोह, उल्लू, कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है।

★शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नही बना सकते। गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें।

★ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन लेवे क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नही है। उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है।

★धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है।

★राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें , क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं।

★शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है। मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं। शूद्र टूटे फूटे बर्तनों में भोजन करें। शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने।

★यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए।

★दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित , चाण्डाल , मूर्ख , धोबी आदि अंत्यवासी हो उनके साथ द्विज न रहें। लोहार , निषाद , नट , गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है।

★शूद्रों के समय कोई भी ब्राह्मण वेदाध्ययन में कोई सम्बन्ध नही रखें , चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए।

★स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नही होता। यह शास्त्र द्वारा निश्चित है। अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं, वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं, यह शाश्वत नियम है।

★अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराये।

★शूद्रों को बुद्धि नही देना चाहिए अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नही है। शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें।

★जिस प्रकार शास्त्रविधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि, दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं, उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है।

★शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नही करना चाहिए। ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक, क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक, वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो।

★दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे।

       बाबा साहब डा भीम राव अम्बेडकर जी को कोटिशः नमन कि उन्होंने 20 वीं सदी में देश में अकेले ही मनुवाद के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया था।मनुस्मृति दहन दिवस पर आप सभी को जय भीम!जय भारत!जय संविधान!

-चन्द्रभूषण सिंह यादव

(25 दिसम्बर 2021) 


दक्षिण भारत में आज जोरशोर सेई.वी. रामास्वामी यानि पेरियारका जन्मदिन मनाया जा रहा है. पेरियार ने ताजिंदगी हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद का जमकर विरोध किया. उन्होंने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया. जाति प्रथा का घोर विरोध किया. यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन का पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा. पढ़िए उनकी वो पंद्रह बातें, जिनसे विवाद हुआ.

1. मैंने सब कुछ किया. मैंने गणेश आदि सभी ब्राह्मण देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ डालीं. राम आदि की तस्वीरें भी जला दीं. मेरे इन कामों के बाद भी मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की गिनती में लोग इकट्ठा होते हैं तो साफ है कि 'स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव होना जनता में, जागृति का सन्देश है.'

2. दुनिया के सभी संगठित धर्मो से मुझे सख्त नफरत है.

3. शास्त्र, पुराण और उनमें दर्ज देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वो सारे के सारे दोषी हैं. मैं जनता से उन्हें जलाने तथा नष्ट करने की अपील करता हूं.

4. 'द्रविड़ कड़गम आंदोलन' का क्या मतलब है? इसका केवल एक ही निशाना है कि, इस आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था का अंत कर देना, जिसके कारण समाज ऊंच और नीच जातियों में बांटा गया है. द्रविड़ कड़गम आंदोलन उन सभी शास्त्रों, पुराणों और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाए रखे हैं.

periyar

5. ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है. वो खुद आरामदायक जीवन जी रहा है. तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है. मैं आपको सावधान करता हूं कि उनका विश्वास मत करो.

6. ब्राह्मणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर,और देवी-देवताओं की रचना की.

7. सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए हैं तो फिर अकेले ब्राह्मण उच्च व अन्य को नीच कैसे ठहराया जा सकता है?

8. आप अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई क्यों इन मंदिरों में लुटाते हो. क्या कभी ब्राह्मणों ने इन मंदिरों, तालाबों या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया?

9. हमारे देश को आजादी तभी मिली समझनी चाहिए, जब ग्रामीण लोग, देवता ,अधर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएंगे.

10. आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर संदेश और अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं. हम ब्राह्मणों द्वारा श्राद्धों में परलोक में बसे अपने पूर्वजों को चावल और खीर भेज रहे हैं. क्या ये बुद्धिमानी है?

11. ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है. ये स्थिति उन्हीं के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो.

12. ब्राह्मणों के पैरों पर क्यों गिरना? क्या ये मंदिर हैं? क्या ये त्यौहार हैं? नही , ये सब कुछ भी नही हैं. हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है.|

13. ब्राह्मण देवी-देवताओं को देखो, एक देवता तो हाथ में भाला/ त्रिशूल उठाकर खड़ा है. दूसरा धनुष बाण. अन्य दूसरे देवी-देवता कोई गुर्ज, खंजर और ढाल के साथ सुशोभित हैं, यह सब क्यों है? एक देवता तो हमेशा अपनी ऊँगली के ऊपर चारों तरफ चक्कर चलाता रहता है, यह किसको मारने के लिए है?

14. हम आजकल के समय में रह रहे हैं. क्या ये वर्तमान समय इन देवी-देवताओं के लिए सही नहीं है? क्या वे अपने आप को आधुनिक हथियारों से लैस करने और धनुषवान के स्थान पर , मशीन या बंदूक धारण क्यों नहीं करते? रथ को छोड़कर क्या श्रीकृष्ण टैंक पर सवार नहीं हो सकते? मैं पूछता हूँ कि जनता इस परमाणु युग में इन देवी-देवताओं के ऊपर विश्वास करते हुए क्यों नहीं शर्माती?

15. उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हें शुद्र कहे, उन पुराणों और इतिहास को ध्वस्त कर दो, जो देवता को शक्ति प्रदान करते हैं. उस देवता की पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला और बौद्धगम्य है.|

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

हिन्दू धर्म(ब्राह्मण धर्म) का खूॅटा-


यादव शक्ति पत्रिका ने हिंदू धर्म में कुल 5 खूंटों का जिक्र किया है। आप लोग भी पढ़िए क्या हैं हिंदू धर्म के 5 खूंटे..
जिनसे ब्राह्मणों ने सभी दलितों और पिछड़ों को बांध रखा है..
हिन्दू धर्म(ब्राह्मण धर्म) का खूॅटा-
पहला खूॅटा- ब्राह्मण:-- 

हिन्दू धर्म में ब्राह्मम जन्मजात श्रेष्ठ है चाहे चरित्रसे वह कितना भी खराब क्यों न हो।
हिन्दू धर्म में उसके बिना कोई भी मांगलिक कार्य हो ही नहींसकता।
किसी का विवाह करना हो तो दिन तारीख बताएगा ब्राह्मण।
किसी को नया घर बनाना हो तो भूमिपूजन करायेगा ब्राह्मण।
किसी के घर बच्चा पैदा हो तो नाम- राशि बतायेगा ब्राह्मण।
किसी की मृत्यु हो जाय तो क्रियाकर्म करायेगा, भोज खायेगा ब्राह्मण।
बिना ब्राह्मण से पूछे
हिन्दू हिलने की स्थिति में नहीं है।
इतनी मानसिक गुलामी में जी रहे हिन्दू से विवेक की कोई बात करने पर वह सुनने को भी तैयार नहीं होता।
पिछडों /एससीके आरक्षण का विरोध करता है ब्राह्मण।
पिछड़ों /एससी की शिक्षा,रोजगार,सम्मान का विरोध करता है ब्राह्मण।
इतना के बावजूद भी वह पिछड़ों /एससी का प्रिय और अनिवार्य बना हुआ है क्यों? घोर आश्चर्य।
हिन्दू ब्राह्मण रूपी खूॅटा से बॅधा हुआ है।
दूसरा खूॅटा -ब्राह्मण शास्त्र:-
यह जहरीले साॅप की तरह हिन्दू समाज के लिए जानलेवा है।
मनुस्मृति जहरीली पुस्तक है।
वेद ,पुराण ,रामायण आदि में भेद-भाव ,ऊॅच-नीच, छूत- अछूत का वर्णन मनुष्य- मनुष्य में किया गया है।
ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण,
भुजा से क्षत्रिय,
जंघा से वैश्य ,
पैर से शूद्र की उत्पत्ति बताकर शोषण -दमन की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है।
हिन्दू-शास्त्रों मे स्त्री को गिरवी रखा जा सकता है,
बेचा जा सकता है,
उधार भी दिया जा सकता है।
हिन्दू समाज इन
शास्त्रों से संचालित होता रहा है।
तीसरा खूॅटा--हिन्दू धर्म के पर्व/त्योहार:-
इसका मतलब आर्यों द्वारा इस देश के एससी/पिछड़ों (मूलवासियों) की की गयी निर्मम हत्या पर मनाया गया जश्न।
आर्यों ने जब भी और जहाॅ भी मूलवासियों पर विजय हासिल की ,विजय की खुशी में यज्ञ किया।
यही पर्व कहा गया।
पर्व ब्राह्मणों की विजय और त्योहार मूलवासियों के हार की पहचान है।
त्योहार का मतलब होता है-तुम्हारी हार यानी मूलवासियों की हार।
इस देश के मूलवासी अनभिज्ञता की वजह से
पर्व-त्योहार मनाते हैं।
न किसी को अपने इतिहास का ज्ञान है और न अपमान का बोध।
सबके सब ब्राह्मणवाद के खूॅटे से बॅधे हैं।
अपना मान -सम्मान और इतिहास सब कुछ खो दिया है।
अपने ही अपमान और विनाश का उत्सव मनाते हैं और शत्रुओं को सम्मान और धन देते हैं।
यह चिन्तन का विषय है।
होली , होलिका की हत्या और बलात्कार का त्योहार।
दशहरा - दीपावली-रावण वधका त्योहार।
नवरात्र-महिषासुर वध का त्योहार।
किसी धर्म में त्योहार पर शराब पीना और जुआ खेलना वर्जित है ।
पर हिन्दू धर्म में होली में शराबऔर दीपावली पर जुआ खेलना धर्म है।
हिन्दू समाज इस खूॅटे से पुरी तरह बॅधा है।
चौथा खूॅटा- देवी -देवता-

-हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवता बताये गये हैं।
पाप-पुण्य ,जन्म-मरण,
स्वर्ग -नरक, पुनर्जन्म,प्रारब्ध का भय बताकर
काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा -आराधना का विधान किया गयाहै।
मन्दिर -मूर्ति ,पूजा,
दान- दक्षिणा देना अनिवार्य बताया गया है।
हिन्दू समाज इस खूॅटे से बॅधा हुआ है और पाखण,अंधविश्वास,अंधश्रद्धा से जकड़ा है।
पाॅचवां खूॅटा-तीर्थस्थान:-
-ब्राह्मणों ने देश के चारों ओर तीर्थस्थान के हजारों खूॅटे गाड़ रखे हैं।
इन तीर्थस्थानों के खूॅटे से टकराकर मरना पुण्य और स्वर्ग प्राप्ति का सोपान बताया गया है।
हिन्दू समाज के इन खूटों से टकराकर मरने की घटनायें प्रायः होती रहती हैं और जान माल का नुकसान होता है।

ब्राह्मणवाद के इन खूॅटो को उखाड़ने के लिए
चिन्तन- मनन, विचार-विमर्श करना होगा।
किसी भी मांगलिक कार्य में ब्राह्मण को न बुलाने से,
ब्राह्मणशास्त्रों को न पढ़ने,
न मानने से,
हिन्दू (ब्राह्मण)त्योहारों को
न मनानेसे,
काल्पनिक हिन्दू देवी-देवताओं को न मानने,
न पूजने से,
तीर्थस्थानों में न जाने,
दान -दक्षिणा न देने से ब्राह्मणवाद के सभी खूॅटे उखड़ सकते हैं।
ब्राह्मणवाद से समाज
मुक्त हो सकता है और मानववाद विकसित हो सकता है।
इस पर चिन्तन-मनन करने की आवश्यकता है।
आइए ब्राह्मणवाद से मुक्ति और मानववाद को विकसित करने का सकल्प लें।


साभार-
यादव शक्ति पत्रिका..