बुधवार, 5 नवंबर 2025

जो भ्रष्ट हैं गुस्सा कैसे करेंगे ?

खाता न बही चचा जो कहें वही सही !
हा हा, चचा का पुराना हिसाब-किताब!  
**"खाता न बही, चचा जो कहें वही सही"** 😄  
ये कहावत तो तब चलती है जब हिसाब गड़बड़ हो, और चचा की बात को आँख मूंदकर मान लिया जाए!  
बस, चचा ने बोल दिया — **सही है, बाकी सब गलत!**  
क्या बात है, चचा का हिसाब आज भी चलेगा? 😉




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जो भ्रष्ट हैं गुस्सा कैसे करेंगे ?
भ्रष्ट लोग गुस्सा **बहुत चालाकी से** करते हैं, चचा! 😏  
- **सीधे गुस्सा नहीं दिखाते**, बल्कि **मिठास में लपेटकर** करते हैं।  
- **"अरे, गलती तो हो गई ना..."** कहकर **पल्ला झाड़ लेते हैं**।  
- **गुस्सा दिखाने की बजाय**, **धमकी**, **ट्रांसफर**, या **फाइल दबाकर** बदला लेते हैं।  
**चचा का हिसाब**:  
*"खाता न बही, गुस्सा न दिखाई... जो चचा कहें, वही सही!"* 😉  
गुस्सा करेंगे भी तो **अंदर से**, बाहर से **मुस्कान**!  
क्योंकि **खुद पर गुस्सा आएगा तो हिसाब खुल जाएगा**! 😄

भ्रष्ट और भ्रष्टाचार अपने आप में सहज बेईमान हो जाते हैं। उनको किसी भी तरह से बदलना सहज नहीं होता इसलिए जिस तरह भारतीय समाज में जड़ जमा लिया है। और बहुत ही अयोग्य और शातिर लोग सत्ता में आ गए हैं उन्हें भगाना और उसका तरीका निकालना होगा। 




मंगलवार, 4 नवंबर 2025

वांगचुक 'टाइम' के 100 प्रभावशाली लोगों में, पत्नी बोलीं- सरकार उनको देश विरोधी बता रही

दुनिया  की नजर में जो विजेता है उसको उसी देश में देशद्रोही करार दिया जा रहा है यही "मनुवाद" है 

वांगचुक 'टाइम' के 100 प्रभावशाली लोगों में, पत्नी बोलीं- सरकार उनको देश विरोधी बता रही

31 OCT, 2025



लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ‘टाइम’ मैगज़ीन की 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल हुए हैं। उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो ने कहा कि सरकार एक सच्चे देशभक्त को देशविरोधी बताने की कोशिश कर रही है।

sonam wangchuk fcra license 

सोनम वांगचुक पर सरकार ने कसा शिकंजा
सोनम वांगचुक की अब दो अलग-अलग तस्वीरें हैं। एक तरफ भारत सरकार उन्हें ‘राष्ट्र-विरोधी’ बता कर जेल में रख रही है तो दूसरी तरफ दुनिया की मशहूर टाइम मैगजीन ने उन्हें 2025 के सबसे प्रभावशाली 100 लोगों में चुना है। वे जलवायु की रक्षा करने वाले नेताओं की सूची में हैं।

30 अक्टूबर को टाइम ने अपनी ‘टाइम100 क्लाइमेट’ सूची जारी की। इसमें सोनम वांगचुक को ‘डिफेंडर्स’ श्रेणी में जगह मिली है। मैगजीन ने कहा कि वे व्यापार और समाज को असली क्लाइमेट एक्शन की ओर ले जा रहे हैं। सोनम की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने ट्वीट कर कहा है, "जहाँ उनकी अपनी सरकार वांगचुक को राष्ट्र-विरोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा घोषित करने में जुटी है, वहीं टाइम मैगज़ीन उन्हें अपनी 2025 की TIME-100 Climate सूची में 'व्यापार को असली क्लाइमेट एक्शन की ओर ले जाने वाले दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं' के रूप में सम्मानित कर रही है!"

यह वैश्विक सम्मान तब आया है जब कुछ ही हफ्ते पहले केंद्र सरकार ने वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए के तहत गिरफ्तार किया है। वह लद्दाख की स्वायत्तता और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर लंबे समय से धरने पर थे। इसी बीच यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। इस हिंसा के बाद वांगचुक को गिरफ़्तार किया गया।

सोनम वांगचुक जेल में क्यों हैं?
सोनम वांगचुक फ़िलहाल राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए के तहत हिरासत में हैं। उनकी गिरफ्तारी 26 सितंबर 2025 को हुई थी, जो लद्दाख में राज्य के दर्जे और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों से जुड़ी है। दरअसल, इस सबकी शुरुआत छह साल पहले ही हो गई थी। लद्दाख को 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था। स्थानीय लोग राज्य का दर्जा, नौकरी और भूमि अधिकारों की मांग कर रहे हैं ताकि क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को बाहरी शोषण से बचाया जा सके। वांगचुक ने लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन यानी एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए जैसे संगठनों के साथ मिलकर शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया, जिसमें 35 दिनों का अनशन भी शामिल था।

24 सितंबर 2025 को लेह में प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें पुलिस फायरिंग से चार लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हुए। केंद्र सरकार ने वांगचुक पर इन प्रदर्शनों को भड़काने का आरोप लगाया। लद्दाख प्रशासन ने वांगचुक को एनएसए के तहत गिरफ्तार किया। एनएसए बिना मुकदमे के 12 महीने तक हिरासत की अनुमति देता है। प्रशासन का दावा है कि वांगचुक के उत्तेजक बयानों ने सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डाला। देश विरोधी बयान जैसे कई आरोप लगाए गए हैं। उन्हें जोधपुर जेल भेजा गया, ताकि स्थानीय समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों से बचा जा सके।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका:
वांगचुक की पत्नी गितांजलि अंगमो ने एनएसए हिरासत को चुनौती देते हुए हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की। उन्होंने दावा किया कि हिरासत अवैध और मनमानी है, जो भाषाई संदर्भों की गलत व्याख्या या दमनकारी इरादे से प्रेरित है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर 2025 को केंद्र, लद्दाख यूटी और जेल अधीक्षक को नोटिस जारी किया। यह मामला अभी भी अदालत में है।

आइस स्तूप : पहाड़ों में पानी बचाने का जादू
टाइम मैगज़ीन ने सोनम वांगचुक के जलवायु पर काम की खूब सराहना की है। वांगचुक लद्दाख में रहते हैं। वहां ऊंचाई पर पानी की बहुत कमी है। गर्मियों में हिमनद पिघलते हैं, लेकिन पानी सही समय पर नहीं मिलता। वांगचुक ने एक नया तरीका निकाला– आइस स्तूप का। सर्दियों में नदी का पानी पाइप से लाते हैं। ठंड में पानी को ऊपर छिड़कते हैं। बूंद-बूंद जमकर बर्फ का बड़ा ढेर बन जाता है। ठीक बौद्ध स्तूप की तरह। गर्मी में यह बर्फ धीरे-धीरे पिघलती है और खेतों को पानी देती है। एक आइस स्तूप से लाखों लीटर पानी बचता है। इससे गांवों में लोग फिर से बसने लगे।
2017 तक ये आइस स्तूप 12 मंजिलें ऊंचे हो गए, प्रत्येक 3.2 मिलियन गैलन पानी स्टोर कर सकता है, जो मई-जून के शुष्क महीनों में किसानों के लिए महत्वपूर्ण सिंचाई प्रदान करता है। एक आइस स्तूप अकेले 264,000 गैलन पानी उत्पन्न करता है, जो शुष्क क्षेत्रों में कृषि को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है। वांगचुक के इन नवाचारों ने कुलुम जैसे गांवों को पुनर्जीवित किया है, जहां लोग अपने घर लौट सके। चिली, नेपाल, पाकिस्तान में भी यह तरीका अपनाया जा रहा है।
टाइम100 क्लाइमेट सूची क्या
टाइम की 2025 टाइम100 क्लाइमेट सूची अब तीसरे वर्ष में है। यह टाइटन्स, इनोवेटर्स, लीडर्स, डिफेंडर्स और कैटेलिस्ट्स जैसी श्रेणियों में नेताओं को सम्मानित करती है। इस वर्ष की सूची में पोप लियो XIV, किंग चार्ल्स III और अभिनेता सैमुअल एल. जैक्सन जैसे नाम शामिल हैं।

बहरहाल, जिन सोनम वांगचुक को सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए जेल में रखा है, उनको प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल कर सम्मानित किया है। ये 100 लोग जलवायु अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वालों में हैं।

सोमवार, 3 नवंबर 2025

"बताओ वह कौन सा राज्य है जहां आप बिल्कुल भी नहीं रहना चाहोगे।" "बिहार"

Ravindra Kant Tyagi (30 October at 07:33) फेसबुक पोस्ट से साभार 
"बताओ वह कौन सा राज्य है जहां आप बिल्कुल भी नहीं रहना चाहोगे।"
"बिहार"
रविन्द्रकांत त्यागी 
(त्यागियों का चरित्र और जाति भूमिहारों
की ही तरह होती है)

"क्यों? बिहार तो भगवान महावीर की भूमि है। चाणक्य और सम्राट अशोक की भूमि है। मैथिली शरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर का जन्म स्थान है।"
"बिहार वह जगह है जहां मुख्यमंत्री के साले सड़क से उठाकर एक बेटी का बलात्कार करते हैं और उसे मार कर सड़क पर फेंक देते हैं। बिहार वो भूमि है जहां आइएएस की पत्नी तक का बलात्कार हो सकता है। बिहार वह भूमि है जहां एक ही आदमी दो बेटों को एसिड में डूबा कर और तीसरे को गोली मारकर हत्या की जा सकती है। जहां फिरौती के फैसले मुख्यमंत्री के घर में बैठकर होते रहे हैं।"
"अरे अरे... रुको भाई। अब तो बिहार में 20 साल से नीतीश कुमार की सरकार है।"
"किसने कहा 20 साल से अकेले नीतीश कुमार की सरकार है। इसी 20 साल में ऐसा दौर बार-बार आया है जब नीतीश कुमार देश के सबसे बड़े आततायी लालू प्रसाद यादव से गलबहियां करते देखे गए। इसी 20 साल में वह समय भी शामिल है जब तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री थे। दूसरी और महत्वपूर्ण बात। बिहार में ऐसा राजनीतिक समय कब आ पाया जब अपहरण कर्ताओं के, हत्यारों के, एक्सटॉर्शन करने वालों के, जातिगत विद्रोह पैदा करने वालों के और बलात्कारियों के सबसे बड़े रहनुमा लालू प्रसाद यादव का प्रभाव बिहार की राजनीति से पूरी तरह समाप्त हो गया हो। वर्तमान विधानसभा में भी लालू प्रसाद यादव की पार्टी बिहार की सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी है। जब इस बात की संभावना लगातार बनी रहेगी कि लालू प्रसाद यादव जैसे राजनीतिक आतंकी की पार्टी कभी भी सत्ता में आ सकती है या साझेदारी कर सकती है तो देश का कौन उद्योगपति बिहार में उद्योग लगाएगा। कौन सी प्रतिभा बिहार में अपना भविष्य और बिहार के लोगों का भविष्य बनाना चाहेगी। कौन से व्यापारी बिहार में रहकर अपना व्यापार फैलाएंगे और लोगों को रोजगार देने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। 
जब तक बिहार से इस आतंकी परिवार का आतंक पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाएगा, जब तक बिहार के लोगों को इतनी सी बात समझ में नहीं आएगी की प्रदेश की आपराधिक छवि प्रगति में सबसे बड़ी बाधक है और उस आपराधिक छवि को बनाने का जिम्मेदार एक ही व्यक्ति और एक ही परिवार है। जब तक बिहार की राजनीति से उसका समूल विनाश नहीं हुआ तब तक बिहार का ना कोई उत्तरोत्तर विकास होगा। ना पलायन रुकेगा। ना लोगों को रोजगार मिलेगा और ना ही बिहार तेजी से विकास कर पाएगा।
(त्यागी जी ग़ाज़ियाबाद के सिहानी गांव के रहने वाले हैं उनकी जमीन पर ही राजनगर एक्सटेंशन नयी आवासीय योजना का निर्माण हुआ है जमीन प्राधिकरण ने अधिगृहित की तो मुआवज़ा मिला तो उन्होंने एक ब्ल्यूमून बिल्डर की संस्था बनाकर प्रॉपर्टी का काम करते हैं संघ के समर्थक और भाजपाई मानसिकता के सामंतवादी सोच रखते हैं। कहानी और उपन्यास लिखते हैं इसलिए समाजवादी होने का भ्रम उत्पन्न करते रहते हैं। आमतौर पर नवधनाढ्य और सामंती मानसिकता से ओतप्रोत भक्तों की जमात से घिरे रहना आमतौर पर इनका सगल है। 
जैसा की हर संघी स्वाभाविक रूप से संविधान विरोधी और मनुस्मृतिवादी होता भी है और नाटक भी करता है तो यह उनके घोर समर्थक ही समझे जा सकते हैं। आमतौर पर यह वर्णव्यवस्था के पोषक और आधुनिक युग में भी संविधान विरोधी आचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। ) 
इनके पोस्ट को देखा तो लगा की इन्हे जवाब देना ही चाहिए जिसे नीचे उसी रूप में लगा रहा हूँ" 
लालू जी आपको आतंकी इसलिए लगते हैं कि आपके भाई बंधुओ ने जो आतंक बिहार में फैलाया हुआ था उसे समाप्त करने का और आम आदमी को अधिकार दिया और अब सरकारी नौकरी देने की बात कर रहे हैं यह सब आपको कैसे बर्दाश्त हो सकता है।
Dr.Lal Ratnakar : Ravindra Kant Tyagi जी
वाह त्यागी जी !
लालू जी को आपने "आतंकी" की उपाधि दी है! सही कहा आप लोग तो आतंकियों को ही भगवान बनाकर पूजते हैं और पूजते रहे हैं। नाम लेने की जरूरत नहीं है आप खुद समझदार हैं और अपने सारे आतंकवादियों को जानते हैं।
लालू जी आपको आतंकी इसलिए लगते हैं कि आपके भाई बंधुओ ने जो आतंक बिहार में फैलाया हुआ था उसे समाप्त करने का और आम आदमी को अधिकार दिया और अब सरकारी नौकरी देने की बात कर रहे हैं यह सब आपको कैसे बर्दाश्त हो सकता है।
आपकी सोच के वर्चस्ववादियों का लगभग 35 वर्षों से कमोवेश सामंतवाद को तोड़ रखा है।
उस पीड़ा से पीड़ित होने का आपके लेख में आपका दर्द झलक रहा है।
देश का प्रधानमंत्री बिहार में, देश का गृह मंत्री बिहार में है और एक यादव और दो कुशवाहों की सरे हत्या हो जाती है । सरेआम यह जंगलराज नहीं तो क्या है? और दूसरी तरफ अति पिछड़ों की हत्या भी कर दी जाती है ऐसे ही समय में जब बिहार में "केंचुआ"की देखरेख में बिहार का चुनाव चल रहा है वह तो केवल वोट चोरी के चक्कर में है उसे वहां की सुरक्षा व्यवस्था एवं चुनाव की सुचिता और चुनाव में की जा रही था धांधलिया दिखाई नहीं दे रही।
जो कुछ लिख रहे हैं वह यहीं से लिख रहे हैं या बिहार जाकर लिख रहे हैं।
खैर बिहार से नई रोशनी आने वाली है फिर आपकी समझ में आएगा कि लालू प्रसाद यादव का क्या असर
होता है।
Ravindra Kant Tyagi
Dr.Lal Ratnakar हम का जाने बाबू साहब। ई जो सुभाष यादव हय ना, लालू झादो के साले साहब। वह कह रहे हैं कि लालू यादव के राज में फिरौती की रकम के फैसले मुख्यमंत्री निवास में बैठकर होते थे। और यह तो सभी जानते हैं कि लालू यादव के छोटे साले साधु यादव ने शिल्पी जैन का बलात्कार किया था और उसके उसके प्रेमी की हत्या करके फेंक दिया था। शहाबुद्दीन को कौन नहीं जानत है साहब। व्यापारी के दो बेटों को जिंदा ही एसिड में नहलाकर करने वाले और तीसरे को गोलियों से भूलने वाले। वह लोग आप जैसे अच्छे यादव साहब नहीं हैं। क्रिमिनल है क्रिमिनल।
Dr.Lal Ratnakar
Ravindra Kant Tyagi जी
ना मैं साधु की बात कर रहा हूं और न ही सुभाष की मैं बात कर रहा हूं लालू यादव की जो अपनी वैचारिकी से पूरी दुनिया में पहचान बनाई है।
जिनको समाज के सुविधा भोगियों ने जय तक में भी डाला ईसा मसीह और तमाम ऐसे युग पुरुष जो अपने समय में यातना सहते रहे और आज हमारे सामने उनके आदर्श उनका जीवन बहुत ही महान और परमार्थ के लिए जाना जाता है।
जब लाखों लोग यह कहते हैं कि लालू जी ने मुझे आवाज दी उन्होंने मेरे अधिकार दिए संविधान का उन्होंने पालन किया और जिसकी वजह से बिहार का दवा कुचला आज राजनीति में अपनी जगह तलाश रहा है वह बिहार का भूमिहार नहीं है और नहीं जो अपने को सामंत कहता है वह है वह है बिहार का बहुजन समाज का व्यक्ति।
अभी अब बताने की बात नहीं है कि हर महापुरुष के इर्द-गिर्द बहुत बुरे और अच्छे दोनों तरह के लोग होते हैं आप बुरो की बात ज्यादा कर रहे हैं अच्छ़ों की नहीं?
Ravindra Kant Tyagi
Dr.Lal Ratnakar एक गरीब किसान परिवार का बेटा जो पशु चिकित्सालय के पीछे बने दो कमरे के क्वार्टर में रहता था और वह भी उसके रिश्तेदार का था। पटना में देश का सबसे बड़ा मॉल बना रहा था। गाजियाबाद के पैसिफिक मॉल में उसका शेयर है सबको पता है। नौकरी के बदले जमीन और मकान लिखवाने के स्पष्ट प्रमाण है जिसके कारण मुकदमा चल रहा है। चरक घोटाला 70000 करोड रुपए का है जिसके यदि पर्याप्त साक्ष्य नहीं होते तो पूर्व मुख्यमंत्री इतने लंबे समय जेल में नहीं रहते और स्वास्थ्य कर्म से जमानत पर बाहर नहीं होते। दूसरी और महत्वपूर्ण बात आपने कहा कि महान लोगों के इर्द गिर्द अच्छे और बुरे लोग जुट जाते हैं। शहाबुद्दीन जिसने व्यापारी के बेटों कुर्ता पूर्ण तरीके से मार दिया क्या लाल उसे खुद से दूर नहीं कर सकते थे। बिहार के 10 गरीबों का नाम बताइए जिनकी आर्थिक स्थिति लाल के राज में लाल के समक्ष हो गए हो। लालू प्रसाद यादव मायावती शिबू सोरेन और मुलायम सिंह जैसे गरीबों के मसीहा ने गरीबों को लूट कर अपना घर भरने का काम किया है।
Dr.Lal Ratnakar
Ravindra Kant Tyagi
व्यापार करने में कोई बुराई है और आम तौर पर हर व्यापार में कोई न कोई बेईमानी होती है हमें तो कितने लोगों ने ठगा है कि उसका उल्लेख ही नहीं कर सकते !

Ravindra Kant Tyagi
Dr.Lal Ratnakar सर व्यापार नहीं लूट है। कहां से आया आपके पास और अरबों रुपया। कैसे सामान्य किसान और गरीब परिवार के बेटे बेटी मल्टी मिलेनियर बन गए। 

त्यागी जी इसका मतलब यह हुआ कि आप के अलावा जो भी समृद्धि प्राप्त करेगा वह लुटेरा है, यह कैसे कह सकते हैं ज़रा समृद्ध सालियों का इतिहास खंगालिए ये  सब लूटेरे रहे होंगे आइये आपके सबसे प्रिय के मित्र के पिता के व्यापार पर दृष्टि डाल लें -
धीरूभाई अंबानी की व्यापारिक यात्रा से पहले की स्थिति :
धीरूभाई अंबानी (पूर्ण नाम: धीरजलाल हीराचंद अंबानी) का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के छोटे से गाँव चोरवाड़ में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से थे, जहाँ आर्थिक स्थिति बहुत सीमित थी। उनके पिता हीराचंद गोर्धनभाई अंबानी एक गाँव के स्कूल शिक्षक थे, जो मोढ बनिया (या मोढ घांची) समुदाय से संबंधित थे। यह समुदाय पारंपरिक रूप से मसालों और किराना व्यापार से जुड़ा हुआ था, लेकिन अंबानी परिवार की आय मुख्यतः पिता की शिक्षक नौकरी पर निर्भर थी। माँ जम्नाबेन अंबानी घर संभालती थीं। धीरूभाई पाँच भाई-बहनों में तीसरे थे – बड़े भाई रमणीकभाई, छोटे भाई नतुभाई, बहनें त्रिलोचनाबेन और जसुबेन। परिवार की आर्थिक तंगी ऐसी थी कि बुनियादी जरूरतें भी मुश्किल से पूरी होती थीं, और स्वतंत्रता के बाद के भारत में अवसरों की कमी ने इसे और कठिन बना दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- **बचपन**: धीरूभाई का बचपन ग्रामीण गुजरात के सादगी भरे परिवेश में बीता। वे बचपन से ही बुद्धिमान और महत्वाकांक्षी थे, लेकिन औपचारिक शिक्षा में ज्यादा रुचि नहीं लेते थे। स्कूल अक्सर बंक करके वे सड़कों पर व्यापारियों को देखते और सीखते थे। वे सप्ताहांत पर भजिया (फ्राइड स्नैक्स) बेचकर परिवार की मदद करते थे, जो उनकी उद्यमशीलता का प्रारंभिक संकेत था।
- **शिक्षा**: उन्होंने स्कूल की शिक्षा को 16 वर्ष की आयु में बीच में ही छोड़ दिया।उस समय समाजवाद और राजनीति में रुचि रखते थे, लेकिन पिता की खराब सेहत और पारिवारिक आर्थिक संकट ने उन्हें मजबूर किया कि वे पढ़ाई छोड़कर कमाई की तलाश में निकल पड़े।
#नौकरी की शुरुआत (व्यापार से पहले)
धीरूभाई ने 1948 में (16 वर्ष की आयु में) भारत छोड़कर यमन (तब ब्रिटिश कॉलोनी एडेन) चले गए, जहाँ उनके बड़े भाई रमणीकभाई पहले से नौकरी कर रहे थे। एडेन दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक था, जो व्यापारिक अवसरों से भरा था।
- **पहली नौकरी**: उन्होंने ए. बेसे एंड कंपनी (एक ट्रांसकॉन्टिनेंटल ट्रेडिंग फर्म, जो 1950 के दशक में सूएज पूर्व का सबसे बड़ा व्यापारिक संगठन था) में डिस्पैच क्लर्क के रूप में काम शुरू किया। वेतन बहुत कम था – शुरुआत में मात्र 300 शिकेल प्रति माह।
- **कार्यक्षेत्र**: बाद में उन्हें पेट्रोल स्टेशन पर गैस स्टेशन अटेंडेंट (पेट्रोल पंप पर ईंधन भरने का काम) के रूप में स्थानांतरित किया गया। वे शेल पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के विभाग में काम करते थे, जहाँ उन्होंने व्यापार, लेखांकन, माल ढुलाई और अंतरराष्ट्रीय बाजार की बारीकियाँ सीखीं। उन्होंने मुफ्त में एक अकाउंटिंग फर्म में काम करके वित्तीय ज्ञान प्राप्त किया।
- **कौशल विकास**: इन वर्षों में (1948-1958 तक) उन्होंने कड़ी मेहनत से बचत की। वे व्यापारियों से घिरे रहते, बाजार की नब्ज पकड़ते और जोखिम लेने की आदत डाली। यह अवधि उनके लिए एक अनौपचारिक 'एमबीए' जैसी थी, जहाँ उन्होंने कम पूंजी में अधिक कमाई के तरीके सीखे।

# व्यापार में प्रवेश (1958 के बाद)
1958 में 26 वर्ष की आयु में भारत लौटने पर धीरूभाई ने अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ साझेदारी में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन शुरू किया। शुरुआती पूंजी मात्र 15,000 रुपये थी, जो मसालों, वस्त्रों और पॉलिएस्टर यार्न के व्यापार से आई। लेकिन व्यापार से पहले की उनकी स्थिति पूरी तरह साधारण और संघर्षपूर्ण थी – एक गरीब शिक्षक का बेटा, जो विदेश में क्लर्क बनकर परिवार का बोझ कम करने की कोशिश कर रहा था।

धीरूभाई की कहानी 'रैग्स टू रिचेस' का प्रतीक है, जो दर्शाती है कि सीमित संसाधनों के बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति और सीखने की भूख से कैसे कोई साम्राज्य खड़ा किया जा सकता है। 

आपकी जानकारी के लिए बताते चलें लालू यादव पटना युनिवेर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट हैं -- 
**उच्च शिक्षा**: पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध बी.एन. कॉलेज, पटना में उन्होंने राजनीति विज्ञान में एम.ए. (मास्टर ऑफ आर्ट्स) और विधि स्नातक (एलएलबी, बैचलर ऑफ लॉज) की डिग्री प्राप्त की। 2004 में पटना विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। शिक्षा के दौरान ही वे छात्र राजनीति की ओर आकर्षित हुए, जो उनके राजनीतिक सफर की नींव बनी।
### लालू प्रसाद यादव: प्रारंभिक शिक्षा और राजनीतिक सफर

लालू प्रसाद यादव (जन्म: 11 जून 1948, फुलवरिया, गोपालगंज जिला, बिहार) एक प्रमुख भारतीय राजनेता हैं, जो बिहार की राजनीति के चेहरे के रूप में जाने जाते हैं। वे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। उनका जीवन गरीबी से संघर्ष, सामाजिक न्याय की लड़ाई और विवादास्पद राजनीति का प्रतीक है। नीचे उनकी प्रारंभिक शिक्षा और राजनीतिक सफर का विस्तृत विवरण दिया गया है।

#### प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
लालू प्रसाद यादव का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंदन राय (कुंदन प्रसाद यादव) एक साधारण किसान थे, जबकि माँ मरछिया देवी (मारछिया देवी) घर संभालती थीं। परिवार यादव (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय से था, और आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा में बाधाएँ आईं। लालू प्रसाद को अपनी वास्तविक जन्म तिथि भी ठीक से याद नहीं, इसलिए वे शैक्षणिक दस्तावेजों के अनुसार 11 जून 1948 ही मानते हैं।

- **प्राथमिक शिक्षा**: उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा 1 से 7 तक) बिहार मिलिट्री पुलिस नंबर-5 मिडिल स्कूल से प्राप्त की। यह स्कूल साधारण था, और आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।
- **उच्च शिक्षा**: पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध बी.एन. कॉलेज, पटना में उन्होंने राजनीति विज्ञान में एम.ए. (मास्टर ऑफ आर्ट्स) और विधि स्नातक (एलएलबी, बैचलर ऑफ लॉज) की डिग्री प्राप्त की। 2004 में पटना विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। शिक्षा के दौरान ही वे छात्र राजनीति की ओर आकर्षित हुए, जो उनके राजनीतिक सफर की नींव बनी।

शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने पटना के बिहार वेटरनरी कॉलेज में थोड़े समय के लिए क्लर्क के रूप में काम किया, लेकिन राजनीति ने उन्हें पूरी तरह आकर्षित कर लिया।

#### राजनीतिक सफर: छात्र आंदोलन से राष्ट्रीय स्तर तक
लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर छात्र जीवन से शुरू हुआ, जो जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले 'बिहार आंदोलन' (संपूर्ण क्रांति) से जुड़कर राष्ट्रीय पटल पर चमका। वे सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों (यादव, कोइरी, मुस्लिम) के उत्थान और ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ लड़ने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका सफर 'टोटल पॉलिटिक्स' (जाति, वर्ग और धर्म का मिश्रण) पर आधारित रहा।

नीचे उनके राजनीतिक सफर का कालानुक्रमिक सारांश तालिका में दिया गया है:

| वर्ष/अवधि | प्रमुख घटना/पद | विवरण |
|------------|---------------|-------|
| **1970** | पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (PUSU) का महासचिव | छात्र राजनीति में प्रवेश। सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय। |
| **1973** | PUSU का अध्यक्ष | छात्र आंदोलनों का नेतृत्व। जयप्रकाश नारायण (जेपी) के मार्गदर्शन में आए। |
| **1974** | बिहार आंदोलन (संपूर्ण क्रांति) में भागीदारी | जेपी के साथ जुड़कर इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आंदोलन। आपातकाल (1975-77) के दौरान जेल गए। |
| **1977** | लोकसभा सांसद (छपरा, जनता पार्टी) | 29 वर्ष की आयु में पहली बार चुनाव जीता। सबसे युवा सांसदों में से एक। |
| **1977-1989** | राज्यसभा सांसद (1986), लोकसभा सांसद (1989, सारण) | जनता दल में शामिल। बिहार में पिछड़े वर्गों का नेतृत्व। |
| **1990-1995** | बिहार के मुख्यमंत्री (पहला कार्यकाल) | जनता दल सरकार। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया। 'लालू राज' की शुरुआत – सामाजिक न्याय पर फोकस। |
| **1995-1997** | बिहार के मुख्यमंत्री (दूसरा कार्यकाल) | पत्नी राबड़ी देवी को उत्तराधिकारी बनाया। चारा घोटाले के कारण विवाद। |
| **1997** | राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की स्थापना | जनता दल से अलग होकर नई पार्टी बनाई। बिहार में पिछड़े और मुस्लिम वोट बैंक मजबूत किया। |
| **2000-2005** | राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया | चारा घोटाले के कारण खुद पद छोड़ा, लेकिन पर्दे के पीछे शासन। |
| **2004-2009** | रेल मंत्री (केंद्रीय) | यूपीए सरकार में। भारतीय रेलवे को घाटे से लाभ (लगभग 90,000 करोड़ रुपये) में बदल दिया। 'लालू मॉडल' प्रसिद्ध। |
| **2009-वर्तमान** | लोकसभा/राज्यसभा सांसद, RJD अध्यक्ष | 2015 में महागठबंधन से बिहार सरकार। बेटे तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी बनाया। चारा घोटाले में सजा, लेकिन राजनीतिक प्रभाव बरकरार। 2025 में भी बिहार राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी। |

- **प्रमुख योगदान**: लालू ने बिहार में 'MY' (मुस्लिम-यादव) समीकरण बनाया, जो पिछड़े वर्गों को सशक्त करने का माध्यम बना। 1990 में मंडल कमीशन लागू कर आरक्षण क्रांति लाए। रेल मंत्री के रूप में सस्ती यात्रा और सुधार किए। लेकिन चारा घोटाला (1996, 950 करोड़ रुपये का घोटाला) ने उनकी छवि को धूमिल किया – कई मामलों में सजा हुई, लेकिन वे जमानत पर बाहर हैं।
- **विवाद और विरासत**: लालू की राजनीति 'जंगल राज' (अराजकता) के आरोपों से घिरी रही, लेकिन वे सामाजिक न्याय के प्रतीक बने। उनके परिवार (पत्नी राबड़ी देवी, बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी, बेटी मीसा भारती) ने राजनीति में प्रवेश किया। 2025 तक RJD महागठबंधन का हिस्सा है, और तेजस्वी बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे।

लालू प्रसाद यादव की कहानी एक गरीब किसान के बेटे से राष्ट्रीय नेता बनने की प्रेरणा है, जो जाति-आधारित राजनीति को नई दिशा देती है।