बुधवार, 5 नवंबर 2025

जो भ्रष्ट हैं गुस्सा कैसे करेंगे ?

खाता न बही चचा जो कहें वही सही !
हा हा, चचा का पुराना हिसाब-किताब!  
**"खाता न बही, चचा जो कहें वही सही"** 😄  
ये कहावत तो तब चलती है जब हिसाब गड़बड़ हो, और चचा की बात को आँख मूंदकर मान लिया जाए!  
बस, चचा ने बोल दिया — **सही है, बाकी सब गलत!**  
क्या बात है, चचा का हिसाब आज भी चलेगा? 😉




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जो भ्रष्ट हैं गुस्सा कैसे करेंगे ?
भ्रष्ट लोग गुस्सा **बहुत चालाकी से** करते हैं, चचा! 😏  
- **सीधे गुस्सा नहीं दिखाते**, बल्कि **मिठास में लपेटकर** करते हैं।  
- **"अरे, गलती तो हो गई ना..."** कहकर **पल्ला झाड़ लेते हैं**।  
- **गुस्सा दिखाने की बजाय**, **धमकी**, **ट्रांसफर**, या **फाइल दबाकर** बदला लेते हैं।  
**चचा का हिसाब**:  
*"खाता न बही, गुस्सा न दिखाई... जो चचा कहें, वही सही!"* 😉  
गुस्सा करेंगे भी तो **अंदर से**, बाहर से **मुस्कान**!  
क्योंकि **खुद पर गुस्सा आएगा तो हिसाब खुल जाएगा**! 😄

भ्रष्ट और भ्रष्टाचार अपने आप में सहज बेईमान हो जाते हैं। उनको किसी भी तरह से बदलना सहज नहीं होता इसलिए जिस तरह भारतीय समाज में जड़ जमा लिया है। और बहुत ही अयोग्य और शातिर लोग सत्ता में आ गए हैं उन्हें भगाना और उसका तरीका निकालना होगा। 




मंगलवार, 4 नवंबर 2025

वांगचुक 'टाइम' के 100 प्रभावशाली लोगों में, पत्नी बोलीं- सरकार उनको देश विरोधी बता रही

दुनिया  की नजर में जो विजेता है उसको उसी देश में देशद्रोही करार दिया जा रहा है यही "मनुवाद" है 

वांगचुक 'टाइम' के 100 प्रभावशाली लोगों में, पत्नी बोलीं- सरकार उनको देश विरोधी बता रही

31 OCT, 2025



लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ‘टाइम’ मैगज़ीन की 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल हुए हैं। उनकी पत्नी गीतांजलि अंगमो ने कहा कि सरकार एक सच्चे देशभक्त को देशविरोधी बताने की कोशिश कर रही है।

sonam wangchuk fcra license 

सोनम वांगचुक पर सरकार ने कसा शिकंजा
सोनम वांगचुक की अब दो अलग-अलग तस्वीरें हैं। एक तरफ भारत सरकार उन्हें ‘राष्ट्र-विरोधी’ बता कर जेल में रख रही है तो दूसरी तरफ दुनिया की मशहूर टाइम मैगजीन ने उन्हें 2025 के सबसे प्रभावशाली 100 लोगों में चुना है। वे जलवायु की रक्षा करने वाले नेताओं की सूची में हैं।

30 अक्टूबर को टाइम ने अपनी ‘टाइम100 क्लाइमेट’ सूची जारी की। इसमें सोनम वांगचुक को ‘डिफेंडर्स’ श्रेणी में जगह मिली है। मैगजीन ने कहा कि वे व्यापार और समाज को असली क्लाइमेट एक्शन की ओर ले जा रहे हैं। सोनम की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने ट्वीट कर कहा है, "जहाँ उनकी अपनी सरकार वांगचुक को राष्ट्र-विरोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा घोषित करने में जुटी है, वहीं टाइम मैगज़ीन उन्हें अपनी 2025 की TIME-100 Climate सूची में 'व्यापार को असली क्लाइमेट एक्शन की ओर ले जाने वाले दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं' के रूप में सम्मानित कर रही है!"

यह वैश्विक सम्मान तब आया है जब कुछ ही हफ्ते पहले केंद्र सरकार ने वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए के तहत गिरफ्तार किया है। वह लद्दाख की स्वायत्तता और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर लंबे समय से धरने पर थे। इसी बीच यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। इस हिंसा के बाद वांगचुक को गिरफ़्तार किया गया।

सोनम वांगचुक जेल में क्यों हैं?
सोनम वांगचुक फ़िलहाल राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए के तहत हिरासत में हैं। उनकी गिरफ्तारी 26 सितंबर 2025 को हुई थी, जो लद्दाख में राज्य के दर्जे और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों से जुड़ी है। दरअसल, इस सबकी शुरुआत छह साल पहले ही हो गई थी। लद्दाख को 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था। स्थानीय लोग राज्य का दर्जा, नौकरी और भूमि अधिकारों की मांग कर रहे हैं ताकि क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को बाहरी शोषण से बचाया जा सके। वांगचुक ने लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन यानी एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए जैसे संगठनों के साथ मिलकर शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया, जिसमें 35 दिनों का अनशन भी शामिल था।

24 सितंबर 2025 को लेह में प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें पुलिस फायरिंग से चार लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हुए। केंद्र सरकार ने वांगचुक पर इन प्रदर्शनों को भड़काने का आरोप लगाया। लद्दाख प्रशासन ने वांगचुक को एनएसए के तहत गिरफ्तार किया। एनएसए बिना मुकदमे के 12 महीने तक हिरासत की अनुमति देता है। प्रशासन का दावा है कि वांगचुक के उत्तेजक बयानों ने सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डाला। देश विरोधी बयान जैसे कई आरोप लगाए गए हैं। उन्हें जोधपुर जेल भेजा गया, ताकि स्थानीय समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों से बचा जा सके।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका:
वांगचुक की पत्नी गितांजलि अंगमो ने एनएसए हिरासत को चुनौती देते हुए हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की। उन्होंने दावा किया कि हिरासत अवैध और मनमानी है, जो भाषाई संदर्भों की गलत व्याख्या या दमनकारी इरादे से प्रेरित है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर 2025 को केंद्र, लद्दाख यूटी और जेल अधीक्षक को नोटिस जारी किया। यह मामला अभी भी अदालत में है।

आइस स्तूप : पहाड़ों में पानी बचाने का जादू
टाइम मैगज़ीन ने सोनम वांगचुक के जलवायु पर काम की खूब सराहना की है। वांगचुक लद्दाख में रहते हैं। वहां ऊंचाई पर पानी की बहुत कमी है। गर्मियों में हिमनद पिघलते हैं, लेकिन पानी सही समय पर नहीं मिलता। वांगचुक ने एक नया तरीका निकाला– आइस स्तूप का। सर्दियों में नदी का पानी पाइप से लाते हैं। ठंड में पानी को ऊपर छिड़कते हैं। बूंद-बूंद जमकर बर्फ का बड़ा ढेर बन जाता है। ठीक बौद्ध स्तूप की तरह। गर्मी में यह बर्फ धीरे-धीरे पिघलती है और खेतों को पानी देती है। एक आइस स्तूप से लाखों लीटर पानी बचता है। इससे गांवों में लोग फिर से बसने लगे।
2017 तक ये आइस स्तूप 12 मंजिलें ऊंचे हो गए, प्रत्येक 3.2 मिलियन गैलन पानी स्टोर कर सकता है, जो मई-जून के शुष्क महीनों में किसानों के लिए महत्वपूर्ण सिंचाई प्रदान करता है। एक आइस स्तूप अकेले 264,000 गैलन पानी उत्पन्न करता है, जो शुष्क क्षेत्रों में कृषि को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है। वांगचुक के इन नवाचारों ने कुलुम जैसे गांवों को पुनर्जीवित किया है, जहां लोग अपने घर लौट सके। चिली, नेपाल, पाकिस्तान में भी यह तरीका अपनाया जा रहा है।
टाइम100 क्लाइमेट सूची क्या
टाइम की 2025 टाइम100 क्लाइमेट सूची अब तीसरे वर्ष में है। यह टाइटन्स, इनोवेटर्स, लीडर्स, डिफेंडर्स और कैटेलिस्ट्स जैसी श्रेणियों में नेताओं को सम्मानित करती है। इस वर्ष की सूची में पोप लियो XIV, किंग चार्ल्स III और अभिनेता सैमुअल एल. जैक्सन जैसे नाम शामिल हैं।

बहरहाल, जिन सोनम वांगचुक को सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए जेल में रखा है, उनको प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल कर सम्मानित किया है। ये 100 लोग जलवायु अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वालों में हैं।

सोमवार, 3 नवंबर 2025

"बताओ वह कौन सा राज्य है जहां आप बिल्कुल भी नहीं रहना चाहोगे।" "बिहार"

Ravindra Kant Tyagi (30 October at 07:33) फेसबुक पोस्ट से साभार 
"बताओ वह कौन सा राज्य है जहां आप बिल्कुल भी नहीं रहना चाहोगे।"
"बिहार"
रविन्द्रकांत त्यागी 
(त्यागियों का चरित्र और जाति भूमिहारों
की ही तरह होती है)

"क्यों? बिहार तो भगवान महावीर की भूमि है। चाणक्य और सम्राट अशोक की भूमि है। मैथिली शरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर का जन्म स्थान है।"
"बिहार वह जगह है जहां मुख्यमंत्री के साले सड़क से उठाकर एक बेटी का बलात्कार करते हैं और उसे मार कर सड़क पर फेंक देते हैं। बिहार वो भूमि है जहां आइएएस की पत्नी तक का बलात्कार हो सकता है। बिहार वह भूमि है जहां एक ही आदमी दो बेटों को एसिड में डूबा कर और तीसरे को गोली मारकर हत्या की जा सकती है। जहां फिरौती के फैसले मुख्यमंत्री के घर में बैठकर होते रहे हैं।"
"अरे अरे... रुको भाई। अब तो बिहार में 20 साल से नीतीश कुमार की सरकार है।"
"किसने कहा 20 साल से अकेले नीतीश कुमार की सरकार है। इसी 20 साल में ऐसा दौर बार-बार आया है जब नीतीश कुमार देश के सबसे बड़े आततायी लालू प्रसाद यादव से गलबहियां करते देखे गए। इसी 20 साल में वह समय भी शामिल है जब तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री थे। दूसरी और महत्वपूर्ण बात। बिहार में ऐसा राजनीतिक समय कब आ पाया जब अपहरण कर्ताओं के, हत्यारों के, एक्सटॉर्शन करने वालों के, जातिगत विद्रोह पैदा करने वालों के और बलात्कारियों के सबसे बड़े रहनुमा लालू प्रसाद यादव का प्रभाव बिहार की राजनीति से पूरी तरह समाप्त हो गया हो। वर्तमान विधानसभा में भी लालू प्रसाद यादव की पार्टी बिहार की सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी है। जब इस बात की संभावना लगातार बनी रहेगी कि लालू प्रसाद यादव जैसे राजनीतिक आतंकी की पार्टी कभी भी सत्ता में आ सकती है या साझेदारी कर सकती है तो देश का कौन उद्योगपति बिहार में उद्योग लगाएगा। कौन सी प्रतिभा बिहार में अपना भविष्य और बिहार के लोगों का भविष्य बनाना चाहेगी। कौन से व्यापारी बिहार में रहकर अपना व्यापार फैलाएंगे और लोगों को रोजगार देने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। 
जब तक बिहार से इस आतंकी परिवार का आतंक पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाएगा, जब तक बिहार के लोगों को इतनी सी बात समझ में नहीं आएगी की प्रदेश की आपराधिक छवि प्रगति में सबसे बड़ी बाधक है और उस आपराधिक छवि को बनाने का जिम्मेदार एक ही व्यक्ति और एक ही परिवार है। जब तक बिहार की राजनीति से उसका समूल विनाश नहीं हुआ तब तक बिहार का ना कोई उत्तरोत्तर विकास होगा। ना पलायन रुकेगा। ना लोगों को रोजगार मिलेगा और ना ही बिहार तेजी से विकास कर पाएगा।
(त्यागी जी ग़ाज़ियाबाद के सिहानी गांव के रहने वाले हैं उनकी जमीन पर ही राजनगर एक्सटेंशन नयी आवासीय योजना का निर्माण हुआ है जमीन प्राधिकरण ने अधिगृहित की तो मुआवज़ा मिला तो उन्होंने एक ब्ल्यूमून बिल्डर की संस्था बनाकर प्रॉपर्टी का काम करते हैं संघ के समर्थक और भाजपाई मानसिकता के सामंतवादी सोच रखते हैं। कहानी और उपन्यास लिखते हैं इसलिए समाजवादी होने का भ्रम उत्पन्न करते रहते हैं। आमतौर पर नवधनाढ्य और सामंती मानसिकता से ओतप्रोत भक्तों की जमात से घिरे रहना आमतौर पर इनका सगल है। 
जैसा की हर संघी स्वाभाविक रूप से संविधान विरोधी और मनुस्मृतिवादी होता भी है और नाटक भी करता है तो यह उनके घोर समर्थक ही समझे जा सकते हैं। आमतौर पर यह वर्णव्यवस्था के पोषक और आधुनिक युग में भी संविधान विरोधी आचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। ) 
इनके पोस्ट को देखा तो लगा की इन्हे जवाब देना ही चाहिए जिसे नीचे उसी रूप में लगा रहा हूँ" 
लालू जी आपको आतंकी इसलिए लगते हैं कि आपके भाई बंधुओ ने जो आतंक बिहार में फैलाया हुआ था उसे समाप्त करने का और आम आदमी को अधिकार दिया और अब सरकारी नौकरी देने की बात कर रहे हैं यह सब आपको कैसे बर्दाश्त हो सकता है।
Dr.Lal Ratnakar : Ravindra Kant Tyagi जी
वाह त्यागी जी !
लालू जी को आपने "आतंकी" की उपाधि दी है! सही कहा आप लोग तो आतंकियों को ही भगवान बनाकर पूजते हैं और पूजते रहे हैं। नाम लेने की जरूरत नहीं है आप खुद समझदार हैं और अपने सारे आतंकवादियों को जानते हैं।
लालू जी आपको आतंकी इसलिए लगते हैं कि आपके भाई बंधुओ ने जो आतंक बिहार में फैलाया हुआ था उसे समाप्त करने का और आम आदमी को अधिकार दिया और अब सरकारी नौकरी देने की बात कर रहे हैं यह सब आपको कैसे बर्दाश्त हो सकता है।
आपकी सोच के वर्चस्ववादियों का लगभग 35 वर्षों से कमोवेश सामंतवाद को तोड़ रखा है।
उस पीड़ा से पीड़ित होने का आपके लेख में आपका दर्द झलक रहा है।
देश का प्रधानमंत्री बिहार में, देश का गृह मंत्री बिहार में है और एक यादव और दो कुशवाहों की सरे हत्या हो जाती है । सरेआम यह जंगलराज नहीं तो क्या है? और दूसरी तरफ अति पिछड़ों की हत्या भी कर दी जाती है ऐसे ही समय में जब बिहार में "केंचुआ"की देखरेख में बिहार का चुनाव चल रहा है वह तो केवल वोट चोरी के चक्कर में है उसे वहां की सुरक्षा व्यवस्था एवं चुनाव की सुचिता और चुनाव में की जा रही था धांधलिया दिखाई नहीं दे रही।
जो कुछ लिख रहे हैं वह यहीं से लिख रहे हैं या बिहार जाकर लिख रहे हैं।
खैर बिहार से नई रोशनी आने वाली है फिर आपकी समझ में आएगा कि लालू प्रसाद यादव का क्या असर
होता है।
Ravindra Kant Tyagi
Dr.Lal Ratnakar हम का जाने बाबू साहब। ई जो सुभाष यादव हय ना, लालू झादो के साले साहब। वह कह रहे हैं कि लालू यादव के राज में फिरौती की रकम के फैसले मुख्यमंत्री निवास में बैठकर होते थे। और यह तो सभी जानते हैं कि लालू यादव के छोटे साले साधु यादव ने शिल्पी जैन का बलात्कार किया था और उसके उसके प्रेमी की हत्या करके फेंक दिया था। शहाबुद्दीन को कौन नहीं जानत है साहब। व्यापारी के दो बेटों को जिंदा ही एसिड में नहलाकर करने वाले और तीसरे को गोलियों से भूलने वाले। वह लोग आप जैसे अच्छे यादव साहब नहीं हैं। क्रिमिनल है क्रिमिनल।
Dr.Lal Ratnakar
Ravindra Kant Tyagi जी
ना मैं साधु की बात कर रहा हूं और न ही सुभाष की मैं बात कर रहा हूं लालू यादव की जो अपनी वैचारिकी से पूरी दुनिया में पहचान बनाई है।
जिनको समाज के सुविधा भोगियों ने जय तक में भी डाला ईसा मसीह और तमाम ऐसे युग पुरुष जो अपने समय में यातना सहते रहे और आज हमारे सामने उनके आदर्श उनका जीवन बहुत ही महान और परमार्थ के लिए जाना जाता है।
जब लाखों लोग यह कहते हैं कि लालू जी ने मुझे आवाज दी उन्होंने मेरे अधिकार दिए संविधान का उन्होंने पालन किया और जिसकी वजह से बिहार का दवा कुचला आज राजनीति में अपनी जगह तलाश रहा है वह बिहार का भूमिहार नहीं है और नहीं जो अपने को सामंत कहता है वह है वह है बिहार का बहुजन समाज का व्यक्ति।
अभी अब बताने की बात नहीं है कि हर महापुरुष के इर्द-गिर्द बहुत बुरे और अच्छे दोनों तरह के लोग होते हैं आप बुरो की बात ज्यादा कर रहे हैं अच्छ़ों की नहीं?
Ravindra Kant Tyagi
Dr.Lal Ratnakar एक गरीब किसान परिवार का बेटा जो पशु चिकित्सालय के पीछे बने दो कमरे के क्वार्टर में रहता था और वह भी उसके रिश्तेदार का था। पटना में देश का सबसे बड़ा मॉल बना रहा था। गाजियाबाद के पैसिफिक मॉल में उसका शेयर है सबको पता है। नौकरी के बदले जमीन और मकान लिखवाने के स्पष्ट प्रमाण है जिसके कारण मुकदमा चल रहा है। चरक घोटाला 70000 करोड रुपए का है जिसके यदि पर्याप्त साक्ष्य नहीं होते तो पूर्व मुख्यमंत्री इतने लंबे समय जेल में नहीं रहते और स्वास्थ्य कर्म से जमानत पर बाहर नहीं होते। दूसरी और महत्वपूर्ण बात आपने कहा कि महान लोगों के इर्द गिर्द अच्छे और बुरे लोग जुट जाते हैं। शहाबुद्दीन जिसने व्यापारी के बेटों कुर्ता पूर्ण तरीके से मार दिया क्या लाल उसे खुद से दूर नहीं कर सकते थे। बिहार के 10 गरीबों का नाम बताइए जिनकी आर्थिक स्थिति लाल के राज में लाल के समक्ष हो गए हो। लालू प्रसाद यादव मायावती शिबू सोरेन और मुलायम सिंह जैसे गरीबों के मसीहा ने गरीबों को लूट कर अपना घर भरने का काम किया है।
Dr.Lal Ratnakar
Ravindra Kant Tyagi
व्यापार करने में कोई बुराई है और आम तौर पर हर व्यापार में कोई न कोई बेईमानी होती है हमें तो कितने लोगों ने ठगा है कि उसका उल्लेख ही नहीं कर सकते !

Ravindra Kant Tyagi
Dr.Lal Ratnakar सर व्यापार नहीं लूट है। कहां से आया आपके पास और अरबों रुपया। कैसे सामान्य किसान और गरीब परिवार के बेटे बेटी मल्टी मिलेनियर बन गए। 

त्यागी जी इसका मतलब यह हुआ कि आप के अलावा जो भी समृद्धि प्राप्त करेगा वह लुटेरा है, यह कैसे कह सकते हैं ज़रा समृद्ध सालियों का इतिहास खंगालिए ये  सब लूटेरे रहे होंगे आइये आपके सबसे प्रिय के मित्र के पिता के व्यापार पर दृष्टि डाल लें -
धीरूभाई अंबानी की व्यापारिक यात्रा से पहले की स्थिति :
धीरूभाई अंबानी (पूर्ण नाम: धीरजलाल हीराचंद अंबानी) का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के छोटे से गाँव चोरवाड़ में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से थे, जहाँ आर्थिक स्थिति बहुत सीमित थी। उनके पिता हीराचंद गोर्धनभाई अंबानी एक गाँव के स्कूल शिक्षक थे, जो मोढ बनिया (या मोढ घांची) समुदाय से संबंधित थे। यह समुदाय पारंपरिक रूप से मसालों और किराना व्यापार से जुड़ा हुआ था, लेकिन अंबानी परिवार की आय मुख्यतः पिता की शिक्षक नौकरी पर निर्भर थी। माँ जम्नाबेन अंबानी घर संभालती थीं। धीरूभाई पाँच भाई-बहनों में तीसरे थे – बड़े भाई रमणीकभाई, छोटे भाई नतुभाई, बहनें त्रिलोचनाबेन और जसुबेन। परिवार की आर्थिक तंगी ऐसी थी कि बुनियादी जरूरतें भी मुश्किल से पूरी होती थीं, और स्वतंत्रता के बाद के भारत में अवसरों की कमी ने इसे और कठिन बना दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- **बचपन**: धीरूभाई का बचपन ग्रामीण गुजरात के सादगी भरे परिवेश में बीता। वे बचपन से ही बुद्धिमान और महत्वाकांक्षी थे, लेकिन औपचारिक शिक्षा में ज्यादा रुचि नहीं लेते थे। स्कूल अक्सर बंक करके वे सड़कों पर व्यापारियों को देखते और सीखते थे। वे सप्ताहांत पर भजिया (फ्राइड स्नैक्स) बेचकर परिवार की मदद करते थे, जो उनकी उद्यमशीलता का प्रारंभिक संकेत था।
- **शिक्षा**: उन्होंने स्कूल की शिक्षा को 16 वर्ष की आयु में बीच में ही छोड़ दिया।उस समय समाजवाद और राजनीति में रुचि रखते थे, लेकिन पिता की खराब सेहत और पारिवारिक आर्थिक संकट ने उन्हें मजबूर किया कि वे पढ़ाई छोड़कर कमाई की तलाश में निकल पड़े।
#नौकरी की शुरुआत (व्यापार से पहले)
धीरूभाई ने 1948 में (16 वर्ष की आयु में) भारत छोड़कर यमन (तब ब्रिटिश कॉलोनी एडेन) चले गए, जहाँ उनके बड़े भाई रमणीकभाई पहले से नौकरी कर रहे थे। एडेन दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक था, जो व्यापारिक अवसरों से भरा था।
- **पहली नौकरी**: उन्होंने ए. बेसे एंड कंपनी (एक ट्रांसकॉन्टिनेंटल ट्रेडिंग फर्म, जो 1950 के दशक में सूएज पूर्व का सबसे बड़ा व्यापारिक संगठन था) में डिस्पैच क्लर्क के रूप में काम शुरू किया। वेतन बहुत कम था – शुरुआत में मात्र 300 शिकेल प्रति माह।
- **कार्यक्षेत्र**: बाद में उन्हें पेट्रोल स्टेशन पर गैस स्टेशन अटेंडेंट (पेट्रोल पंप पर ईंधन भरने का काम) के रूप में स्थानांतरित किया गया। वे शेल पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के विभाग में काम करते थे, जहाँ उन्होंने व्यापार, लेखांकन, माल ढुलाई और अंतरराष्ट्रीय बाजार की बारीकियाँ सीखीं। उन्होंने मुफ्त में एक अकाउंटिंग फर्म में काम करके वित्तीय ज्ञान प्राप्त किया।
- **कौशल विकास**: इन वर्षों में (1948-1958 तक) उन्होंने कड़ी मेहनत से बचत की। वे व्यापारियों से घिरे रहते, बाजार की नब्ज पकड़ते और जोखिम लेने की आदत डाली। यह अवधि उनके लिए एक अनौपचारिक 'एमबीए' जैसी थी, जहाँ उन्होंने कम पूंजी में अधिक कमाई के तरीके सीखे।

# व्यापार में प्रवेश (1958 के बाद)
1958 में 26 वर्ष की आयु में भारत लौटने पर धीरूभाई ने अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ साझेदारी में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन शुरू किया। शुरुआती पूंजी मात्र 15,000 रुपये थी, जो मसालों, वस्त्रों और पॉलिएस्टर यार्न के व्यापार से आई। लेकिन व्यापार से पहले की उनकी स्थिति पूरी तरह साधारण और संघर्षपूर्ण थी – एक गरीब शिक्षक का बेटा, जो विदेश में क्लर्क बनकर परिवार का बोझ कम करने की कोशिश कर रहा था।

धीरूभाई की कहानी 'रैग्स टू रिचेस' का प्रतीक है, जो दर्शाती है कि सीमित संसाधनों के बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति और सीखने की भूख से कैसे कोई साम्राज्य खड़ा किया जा सकता है। 

आपकी जानकारी के लिए बताते चलें लालू यादव पटना युनिवेर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट हैं -- 
**उच्च शिक्षा**: पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध बी.एन. कॉलेज, पटना में उन्होंने राजनीति विज्ञान में एम.ए. (मास्टर ऑफ आर्ट्स) और विधि स्नातक (एलएलबी, बैचलर ऑफ लॉज) की डिग्री प्राप्त की। 2004 में पटना विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। शिक्षा के दौरान ही वे छात्र राजनीति की ओर आकर्षित हुए, जो उनके राजनीतिक सफर की नींव बनी।
### लालू प्रसाद यादव: प्रारंभिक शिक्षा और राजनीतिक सफर

लालू प्रसाद यादव (जन्म: 11 जून 1948, फुलवरिया, गोपालगंज जिला, बिहार) एक प्रमुख भारतीय राजनेता हैं, जो बिहार की राजनीति के चेहरे के रूप में जाने जाते हैं। वे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। उनका जीवन गरीबी से संघर्ष, सामाजिक न्याय की लड़ाई और विवादास्पद राजनीति का प्रतीक है। नीचे उनकी प्रारंभिक शिक्षा और राजनीतिक सफर का विस्तृत विवरण दिया गया है।

#### प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
लालू प्रसाद यादव का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंदन राय (कुंदन प्रसाद यादव) एक साधारण किसान थे, जबकि माँ मरछिया देवी (मारछिया देवी) घर संभालती थीं। परिवार यादव (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय से था, और आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा में बाधाएँ आईं। लालू प्रसाद को अपनी वास्तविक जन्म तिथि भी ठीक से याद नहीं, इसलिए वे शैक्षणिक दस्तावेजों के अनुसार 11 जून 1948 ही मानते हैं।

- **प्राथमिक शिक्षा**: उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा 1 से 7 तक) बिहार मिलिट्री पुलिस नंबर-5 मिडिल स्कूल से प्राप्त की। यह स्कूल साधारण था, और आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।
- **उच्च शिक्षा**: पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध बी.एन. कॉलेज, पटना में उन्होंने राजनीति विज्ञान में एम.ए. (मास्टर ऑफ आर्ट्स) और विधि स्नातक (एलएलबी, बैचलर ऑफ लॉज) की डिग्री प्राप्त की। 2004 में पटना विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। शिक्षा के दौरान ही वे छात्र राजनीति की ओर आकर्षित हुए, जो उनके राजनीतिक सफर की नींव बनी।

शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने पटना के बिहार वेटरनरी कॉलेज में थोड़े समय के लिए क्लर्क के रूप में काम किया, लेकिन राजनीति ने उन्हें पूरी तरह आकर्षित कर लिया।

#### राजनीतिक सफर: छात्र आंदोलन से राष्ट्रीय स्तर तक
लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर छात्र जीवन से शुरू हुआ, जो जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले 'बिहार आंदोलन' (संपूर्ण क्रांति) से जुड़कर राष्ट्रीय पटल पर चमका। वे सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों (यादव, कोइरी, मुस्लिम) के उत्थान और ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ लड़ने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका सफर 'टोटल पॉलिटिक्स' (जाति, वर्ग और धर्म का मिश्रण) पर आधारित रहा।

नीचे उनके राजनीतिक सफर का कालानुक्रमिक सारांश तालिका में दिया गया है:

| वर्ष/अवधि | प्रमुख घटना/पद | विवरण |
|------------|---------------|-------|
| **1970** | पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (PUSU) का महासचिव | छात्र राजनीति में प्रवेश। सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय। |
| **1973** | PUSU का अध्यक्ष | छात्र आंदोलनों का नेतृत्व। जयप्रकाश नारायण (जेपी) के मार्गदर्शन में आए। |
| **1974** | बिहार आंदोलन (संपूर्ण क्रांति) में भागीदारी | जेपी के साथ जुड़कर इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आंदोलन। आपातकाल (1975-77) के दौरान जेल गए। |
| **1977** | लोकसभा सांसद (छपरा, जनता पार्टी) | 29 वर्ष की आयु में पहली बार चुनाव जीता। सबसे युवा सांसदों में से एक। |
| **1977-1989** | राज्यसभा सांसद (1986), लोकसभा सांसद (1989, सारण) | जनता दल में शामिल। बिहार में पिछड़े वर्गों का नेतृत्व। |
| **1990-1995** | बिहार के मुख्यमंत्री (पहला कार्यकाल) | जनता दल सरकार। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया। 'लालू राज' की शुरुआत – सामाजिक न्याय पर फोकस। |
| **1995-1997** | बिहार के मुख्यमंत्री (दूसरा कार्यकाल) | पत्नी राबड़ी देवी को उत्तराधिकारी बनाया। चारा घोटाले के कारण विवाद। |
| **1997** | राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की स्थापना | जनता दल से अलग होकर नई पार्टी बनाई। बिहार में पिछड़े और मुस्लिम वोट बैंक मजबूत किया। |
| **2000-2005** | राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया | चारा घोटाले के कारण खुद पद छोड़ा, लेकिन पर्दे के पीछे शासन। |
| **2004-2009** | रेल मंत्री (केंद्रीय) | यूपीए सरकार में। भारतीय रेलवे को घाटे से लाभ (लगभग 90,000 करोड़ रुपये) में बदल दिया। 'लालू मॉडल' प्रसिद्ध। |
| **2009-वर्तमान** | लोकसभा/राज्यसभा सांसद, RJD अध्यक्ष | 2015 में महागठबंधन से बिहार सरकार। बेटे तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी बनाया। चारा घोटाले में सजा, लेकिन राजनीतिक प्रभाव बरकरार। 2025 में भी बिहार राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी। |

- **प्रमुख योगदान**: लालू ने बिहार में 'MY' (मुस्लिम-यादव) समीकरण बनाया, जो पिछड़े वर्गों को सशक्त करने का माध्यम बना। 1990 में मंडल कमीशन लागू कर आरक्षण क्रांति लाए। रेल मंत्री के रूप में सस्ती यात्रा और सुधार किए। लेकिन चारा घोटाला (1996, 950 करोड़ रुपये का घोटाला) ने उनकी छवि को धूमिल किया – कई मामलों में सजा हुई, लेकिन वे जमानत पर बाहर हैं।
- **विवाद और विरासत**: लालू की राजनीति 'जंगल राज' (अराजकता) के आरोपों से घिरी रही, लेकिन वे सामाजिक न्याय के प्रतीक बने। उनके परिवार (पत्नी राबड़ी देवी, बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी, बेटी मीसा भारती) ने राजनीति में प्रवेश किया। 2025 तक RJD महागठबंधन का हिस्सा है, और तेजस्वी बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे।

लालू प्रसाद यादव की कहानी एक गरीब किसान के बेटे से राष्ट्रीय नेता बनने की प्रेरणा है, जो जाति-आधारित राजनीति को नई दिशा देती है। 

शुक्रवार, 9 मई 2025

सिद्धार्थ रामु (दुबे)

सिद्धार्थ रामु (दुबे ) 
यह अपनी जातीय पहचान छुपाते हैं जैसी जानकारी है यह गोरखपुर मंडल के दुबे हैं। 

Siddharth Ramu  (7h )· 

पांडेय जी ( यूट्यूबर-इतिहासकार अशोक पांडेय), क्या आप जीएन. साईंबाबा को खुद की तरह कैरियरिस्ट बुद्धिजीवी समझते हैं। अरुंधती राय के साथ बस्तर के आदिवासियों से जोड़कर इलाहाबाद-पटना और दिल्ली के जिन साथियों को आपने कैरियरिस्ट-बुद्धिजीवी इन शब्दों में कहा, “अहिंसा का पाठ तो इन्होंने बस्तर में भी नहीं पढ़ाया जिसके नाम पर दिल्ली/पटना/इलहाबाद के पढे-लिखे लोग बुद्धिजीवी बन गए और आदिवासी शिकार होते रहे।  किताबें लिखीं, वाहवाही और रॉयल्टी बटोरी और यूरोप चली गईं।” 

साईं बाबा दिल्ली में रहते थे, वे बुद्धिजीवी तो थे, लेकिन आपकी तरह कैरियरिस्ट बुद्धिजीवी नहीं, क्रांतिकारी बुद्धिजीवी थे।जैसे मैंने वादा किया था, इलाहाबाद, पटना और दिल्ली के उन कुछ साथियों  के बारे में एक-एक बताऊंगा, जिनकी ओर आप ने गंदे इशारे किए हैं- फिलहाल जीएन. साईंबाबा के बारे में। कुछ ज्यादा नहीं, सिर्फ इतना शहादत के बाद उनकी अंतिम विदाई कैसे हुई। दुखद, लेकिन गर्व करने लायक संयोग यह था कि मैं भी वहां मौजूद था, सब अपनी आंखों से देखा और कानों से सुना। पांडेय आप अपने भीतर झांकने की क्षमता बहुत पहले खो चुके हैं, लेकिन साईंबाबा के आइने में एक बार अपना चेहरा देखिए, आपको अपना चेहरा बहुत विकृत नजर आएगा और अंदर की संवेदना-चेतना कलुषित। शायद आपको शर्म भी आए 

जीएन साईबाबा: ‘जिस धज से वह मकतल को गया’ हैदराबाद में अंतिम विदाई, जैसा देखा

जिस धज से कोई मकतल में गया

वो शान सलामत रहती है 

ये जान तो आनी जानी है

इस जां की तो कोई बात नहीं

                                                      फै़ज़ अहमद फै़ज़

अक्सर मौत  विछुड़ने का गम़ देकर जाती है, किसी के न होने का खालीपन, वह व्यक्ति यदि आत्मीय है, तो अपने ही किसी हिस्से के हमेशा-हमेशा के लिए खो देने का अहसास। लेकिन कोई-कोई मौत ऐसी होती है, जो इस सब के साथ ही लोगों के सभी उदात्त इंसानी भावों को एक साथ, एक ही समय में जगा देती है। 

ऐसी ही मौत जीएन साईबाबा की रही। हैदराबाद में उनको अंतिम विदाई देने पहुंचे लोगों के आखों में एक तरफ आंसू, नम आखें थीं, चेहरों पर दर्द की परत-दर-परत थी, तो ठीक उसी समय  लोगों के चेहरों पर गुस्सा, आक्रोश, दुनिया को सबसे के लिए खूबसूरत बनाने का स्वप्न, इंसानियत के दुश्मनों को सबक सिखाने का संकल्प, मेहनतकशों, गरीबों, आदिवासियों, दलितों और हाशिए के अन्य लोगों के संघर्षों में हिस्सेदारी का जज्ब़ा भी दिख रहा था। 

साईबाबा को अंतिम विदाई देने आए लोग उन्हें फूल और लाल चादर ऐसे समर्पित कर रहे थे, जैसे खुद को उनके सपनों-संकल्पों, साहस, जन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और शोषण-उत्पीड़न और हर तरह के अन्याय के खात्में के उनके स्वप्न को साथ जोड़ रहे हों। वहां आंसू थे, दर्द के साथ, जोहार, इंकलाब और लाल सलाम का नारा भी गूंज रहा था। 

एक के बाद एक क्रांतिकारी गीतों का सिलसिला ऐसे आगे बढ़ रहा था, जैसे लोग साईबाबा से कह रहे हों, आप भले ही हमारे बीच नहीं रहे, आपकी विरासत जिंदा है। हम आपकी विरासत को आगे बढ़ाएंगे। उसके लिए हर जरूरी कुर्बानी देंगें। आप जिनकी जिंदगी से दुख-दर्दों को, अपमान को, अन्याय को, शोषण-उत्पीड़न को दूर करने लिए जिए और मरे, हम उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ेगे, उन्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे, उनके साथ कंधा से कंधा मिलाकर, उनके हाथों में हाथ डालकर संघर्ष जारी रखेगें। कारवां रूकने नहीं पाएगा, आगे बढ़ता रहेगा। तेलंगाना-श्रीकाकुलम और दंडकारण्य के क्रांतिकारी संघर्षों की विरासत ठप्प नहीं पड़ेगी, रूकने नहीं पाएगी, आगे बढ़ेगी, नई मंजिल छुएगी। जुल्म के हर रूप  के खिलाफ हम खड़े हैं, खडे होंगे, खड़े रहेंगे। एकजुट होकर संघर्ष करेंगे। ताकतवर से ताकवर निज़ाम भी हमें झुंका नहीं पाएगा, हमारे संकल्प-साहस को तोड़ नहीं पाएगा, हमेंं खरीद नहीं पाएगा, हमारी एकजुटता को खत्म नहीं कर पाएगा, चाहे वह आज का फासीवादी हिंदू-कार्पोरेट गठजोड़ का निजाम नहीं क्यों न हो। यह चीजें उन श्रद्धांजलियों में भी अभिव्यक्त हो रही थीं, जो लोग साईबाबा के प्रति प्रकट कर रहे थे।

साईबाबा की अंतिम विदाई में उनके जेल जीवन के संगी, उनके संघर्षों के साथी, देश के कोने-कोने में मजदूरों, आदिवासियों, दलितों, धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों के लिए संघर्ष कर रहे लोग भी थे। उनकी पत्नी, बेटी, भाई और अन्य सगे-संबंधी तो थे ही। सबसे बड़ी बात यह कि तेलंगाना की क्रांतिकारी विरासत को अपने-अपने तरीकों से आगे बढ़ा रहे करीब सभी संगठनों के प्रतिनिधि भी थे। ऐसा लग रहा था कि साईबाबा ऐसे व्यक्तित्व हों, जिन्होंने क्रांतिकारी-प्रगतिशील संगठनों के बीच की सभी दीवारों को तोड़ दिया हो। 

वामपंथी संगठनों की सभी धाराओं-ग्रुपों के लोग थे, सब समान जज्बे के साथ अंतिम विदाई दे रहे थे। एक बाद-एक अलग-अलग वामपंथी धाराओं और मजदूरों-किसानों, दलितों, आदिवासियों के संगठनों के लोग समूह में आर रहे थे। जोहार-लाल सलाम के साथ के साथ उन्हें अतिम विदाई दे रहे थे। क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत कर रहे थे। फूल-माला और चादर पेश करे रहे थे। तनी मुट्ठियां और चेहरे क्रांतिकारी संकल्प और भावों की अभिव्यक्ति कर रहे थे। सबके चेहरों से ऐसा लग रहा था कि  कोई उनका अपना ही विदा हो रहा है, हमेशा-हमेशा के लिए।

वामपंथी, दलित और आदिवासी संगठनों के साथ मुख्य धारा की राजनीति पार्टियां के नेता भी, जिन वजहों से सही साईबाबा के अंतिम विदाई में शामिल हुए। उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुती की। तेलगांगना राष्ट्रीय समिति ( टीआरएस) के नेता केसीआर ( पूर्व मुख्यमंत्री) भी उन्हें अंतिम विदाई देने का आए थे, भले ही उनकी करतूतों को याद कर साईबाबा को चाहने वालों ने उन्हें गेट में घुसने नहीं दिया, उन्हें लौट जाने को बाध्य कर दिया। विधायक, सांसद, पूर्व विधायक, पूर्व सासंद, राज्य सभा के सदस्य भी आए। शायद तेलंगाना और दक्षिण में साईबाबा का व्यक्तित्व का इतना बड़ा था कि दक्षिण की सभी पार्टियों को उनके प्रति अपनी सकारात्मक श्रद्धांजलि प्रस्तुत करनी पड़ी। इसमे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन भी शामिल हैं।

सबसे बड़ी बात की इस विदाई में छात्र-नौजवान और युवा पीढ़ी शामिल थी। सब के सब एक स्वर से उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प जाहिर कर रहे थे। साईबाबा के व्यक्तित्व, संघर्ष और विचारों ने कैसे उनकी दुनिया बदली, कैसे  हाशिए के लोगों के प्रति उनके सरोकारों को गहरा किया, उन्हें क्रांतिकारी बदलाव और क्रांतिकारी संघर्ष के मायने सिखाए। उसके लिए कुर्बानी का जज्बा भरा, उन्हें कुर्बानी का मतलब सिखाया, कैसे उन्हें निडर बनाया, कैसे-कैसे शक्तिशाली से शक्तिशाली निजाम से टकराने का हौसला दिया। कुछ के जीवन की दिशा ही बदल दी। सब के सब एक स्वर से उनके अधूरे कामों को आगे बढ़ाने, उनके सपनों को पूरा करने की बात कर रहे थे, कह रहे थे।

महिलाओं की उपस्थिति भी ध्यान आकर्षित करने वाली थी। हजारों लोगों के इस समूह में कम से कम एक तिहाई महिलाएं थीं। वह केवल मूकर्दशक नहीं थी, वह वहां चल रहे संघर्षों में हिस्सेदार थीं। उनके लिए साईबाबा एक प्रेरणादीय साथी थे, जो आदिवासियों, दलितों, मजदूरों के संघर्षों के साथी तो ही, पितृसत्ता के खिलाफ महिलाओं के अपने विशिष्ट संघर्ष के भी साथी थी। एक ऐसा सहकर्मी जो अन्याय विरोधी, शोषण-उत्पीड़न विरोधी सभी संघर्षों की एकजुटता का हिमायती था, इस एकजुटता के लिए रात-दिन एक किए हुए था। वहां आईं युवा लड़कियां, अपने-अपने स्तर पर किसी न किसी संघर्ष में शामिल हैं, उनमें कुछ विश्वविद्यालय कैम्पसों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ( ABVP) के ब्राह्मणवादी-वर्ण-जातिवादी, स्त्री-विरोधी, जन विरोधी विचारों और गतिविधियों के खिलाफ बने संयुक्त मोर्चे की सदस्य हैं। उनके लिए अपनी आजादी के साथ औरो की आजादी भी उतनी ही मायने रखती है। वे अपनी आजादी के साथ सबकी आजादी के संघर्ष में शामिल हैं।

वहां एक सबसे बड़ी बात यह दिखी कि यदि राजसत्ता-पुलिस तंत्र और न्यायपालिका किसी संगठन या व्यक्ति पर माओवादी-नक्सली होने का ठप्पा लगा दे तो, लोग उसे ‘अछूत’ नहीं बना देते हैं, जैसा कि कई बार हिंदी पट्टी में दिखता है। वहां के वामपंथी संगठनों, आदिवासी संगठनों, दलित संगठनों और महिला संगठनों के लिए वे संगठन और व्यक्ति ‘अछूत’नहीं हैं, जिन पर राज्य ने माओवादी-नक्सली का ठप्पा लगा रखा है। जैसे ठप्पा साईबाबा पर भारतीय राज्य, पुलिसा-तंत्र और न्यायपालिका ने लगा रखा था। 

वहां के क्रांतिकारी-प्रगतिशील और दलित-आदिवासी-महिला संगठन इस तरह के संगठनों और व्यक्तियों  को अपने आंदोलन का जरूरी और महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। उन्हें उतना ही अपना मानते हैं,जितना किसी अन्य अन्याय विरोधी, शोषण-उत्पीड़न विरोधी संगठन को मानते हैं। उनके भीतर राज्य का यह डर नहीं दिखा रहा था कि यदि आप माओवादी-नक्सलावादी संगठन और व्यक्ति के साथ खड़े होंगे, तो उसकी आंच आप भी आ सकती है, आप राज्य के निशाने पर हो जाएंगे। लेकिन यह मामला एकतरफ नहीं है, वहां के ऐसे संगठन और व्यक्ति भी खुद को अन्य संगठनों-व्यक्तियों से महान नहीं मानते, जिन पर माओवादी-नक्सली होने का ठप्पा नहीं लगा है या उनके तरीकों-रास्तों से सहमत नहीं हैं। जिन्हें वहां माओवादी-नक्सली धारा कहा जाता है, वे लोग भी अन्य वामपंथी संगठनों को संशोधनवादी कहकर रात-दिन गाली नहीं देते है या आंबेडकरवादी कहकर सुधारवादी या बुर्जुआ कहकर अपने से दूर नहीं ढ़केलते। यह चीज साईबाबा की अंतिम विदाई में भी नहीं दिखी। 

अपनी-अपनी सांगठनिक-वैचारिक पहचानों के साथ खड़े होकर भी लोग उन्हें अपना, पूरा का पूरा अपना मानकर अंतिम विदाई दे रहे थे। शायद इसकी सबसे बड़ी वजह यह  है कि वहां जमीन पर संघर्ष चल रहा है, जमीनी संघर्षों में लोगों की सक्रिय हिस्सेदारी हैं, सबको सबकी जरूरत है, सब के सब संघर्षों के साथी हैं। विचारों में, विश्लेषण में, लाइन के सवाल पर, दिशा के सवाल पर, रणनीति और कार्यनीति के सवाल पर असहमति है, बहस-मुबाहिसा है, तीखा वैचारिक संघर्ष है, लेकिन जमीन पर संघर्षों में एक साझापन है, जो गहरे स्तर सबको जोड़े हुए है। सब एक दूसरे की जरूत है, सबको एक स्वप्न जोड़ता है। दुश्मन के हमले से बचाव के लिए सबको एक दूसरे के साथ की जरूरत है। हो सकता है, साईबाबा उनको जोड़ने वाली एक कड़ी भी रहे हों। जो भी हो सब-सब साईबाबा को अपना मानकर अंतिम विदाई दे रहे थे।

साईबाबा को अंतिम विदाई देने आए लोग भले ही कुछ हजार की संख्या में रहे हों, लेकिन वहां पूरा भारत दिख रहा था। सभी सामाजिक-वर्गीय-लैंगिक, भाषायी और क्षेत्रीय समूहों के लोग थे। हर उम्र, हर रूप-रंग, हर बोली-बानी और भेष-भूषा के लोग थे। लगा था कि जैसे वे एक ऐसे इंसान को अंतिम विदाई देने आए हों, जो सबका प्रतिनिधित्व करता हो। जो सबके लिए संघर्ष करता रहा हो। 

साई बाबा का व्यक्तिगत संघर्ष और उसकी उलब्धियां भी भीतर-भीतर लोगों को गहरे स्तर प्रेरणा दे रही थीं। यह एक भूमिहीन, दलित और दूर-दराज के गांव में पैदा एक 90 प्रतिशत शारीरिक तौर पर विकलांग व्यक्ति, व्यक्तिगत तौर पर वह सब कुछ हासिल कर लेता है, जो वह चाहता है। जिसके पिता बचपन में चल बसे। मां मजदूरी करके अपने बच्चे को पढ़ाती है, जो घिसट-घिसट कर स्कूल जाता है, जो विश्वविद्यालय की पढाई पूरा करता है, पीएच-डी करता है, देश के नामी-गिरामी विश्वविद्यालय में शिक्षक ( प्रोफेसर) बनता है। दुनिया के ज्ञान-विज्ञान को अपने भीतर जज्ब करता है। व्यक्तिगत उपलब्धियों को अपनी व्यक्तिगत उन्नति का, सुख का, पद पाने का साधन नहीं बनाता। जो कुछ हासिल करता है, उसे दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए अर्पित कर देता है। जिसे राजसत्ता डरा नहीं पाती, जिसके साहस को तोड़ नहीं पाती, जिसके उर्बर मस्तिष्क को काम करने से रोकने के लिए 10 सालों तक उसे कैद रखती है। उसे फासी की सजा तो नहीं दे पाती, लेकिन मार देने के सारे तरीके अपनाती है और अंत में मार डालती है। फिर भी वह मरता नहीं, लाखों लोगों के आखों में जिंदा हो जाता है, उनके दिलों में धड़कने लगता है, उनके सपनों में जी उठता है। 

मौत कुछ घंटों बाद उनकी आंखें किसी दूसरे की आंख बनने के लिए दे दी गईं। भले ही उनकी आंखें किसी जो मौत के बाद किसी और के लिए अर्पित कर दी गईं, किसी एक व्यक्ति या दो व्यक्ति की आंखें बनी हों। लेकिन साईबाबा की विचारों की आखें, उनकी दिल की धड़कने तो लाखों लोगों की आखें बन गई, उनकी दिलों की धड़कने बन गईं।

जैसे साईबाबा की जिंदगी शानदार रही, उनकी अंतिम विदाई भी शानदार रही। जनचौक के महेंद्र के साथ मैं भी उनकी अंतिम  शानदार विदाई के इस पल को देख पाया, मेरे लिए भी यह एक ऐतिहासिक पल था। अंतिम सलाम जीएन साईबाबा। उम्मीद है आप 21सदी के भारत के एक आइकन बनेंगे।

"नफरत की आग में जलता हमेशा बेगुनाहों का सिंदूर है"

 युद्ध का यही सच है जो भी टिप्पणीकार कुछ भी बकवास कर रहे हैं वह इसके विपरीत लिख करके बता दे कि वह क्या चाहते हैं। डॉक्टर साहब ने इस युद्ध के सारी जांच का वैज्ञानिक सच अपने शब्दों में कर दिया  है इससे बढ़िया और कोई उल्लेख नहीं हो सकता। बहुत-बहुत बधाइयां।

*यह पोस्टर इस युद्ध का सच बयां कर रहा है 

युद्ध पर लिखी गयी यह कविता केवल भारत नहीं वैश्विक विचारों को उजागर करती है, कविता के माध्यम से रचनाकार ने समय के सच और शातिर मानसिकता के भयावह सोच को उजागर किया है, सैनिक और युद्ध के प्रभाव में आने वाले जनसामान्य के कष्ट को दुश्मन और दोस्त के भेद के बिना प्रस्तुत किया गया है।  किसी टिप्पणीकार ने यह भी लिखा है की पाक को ही क्यों चीन को क्यों नहीं आजतक आँख दिखाने की हिम्मत की गयी। जो बहुतेरे सवाल खड़े करते हैं। 



- डॉ ओम शंकर 
"नफरत की आग में जलता हमेशा बेगुनाहों का सिंदूर है"
युद्ध कभी जीवन नहीं देता —
वो सिर्फ़ छीनता है…
माँ की ममता, पिता की उम्मीद,
बहन की राखी, पत्नी का सुहाग,
और ग़रीब की बसी-बसाई दुनिया।
ये लड़ाईयाँ नहीं होतीं देश की रक्षा के लिए,
ये होती हैं सत्ता के स्वार्थ और अहंकार की बलिवेदी —
जहाँ शहीद वही होता है,
जो झोपड़ी में जन्मा होता है,
जिसके हाथ में कभी कलम होनी चाहिए थी,
पर उसकी हथेली पर थमा दी गई एक बंदूक,
और सीने पर टाँक दी गई "राष्ट्रभक्ति" की एक नकली पट्टी।
हर बार वही जलता है —
जो खेत जोतता था,
जिसके बच्चे भूखे सोते थे,
जो साइकिल से कलेक्ट्रेट जाता था नौकरी मांगने,
पर लौटता है अब तिरंगे में लिपटा हुआ —
सीधे श्मशान… सीधे शून्यता।
वो स्त्रियाँ —
जो शहीद की विधवा बनती हैं,
वो राजमहलों में नहीं जन्मतीं,
वो तो ग़रीब की बेटियाँ होती हैं,
जिनकी गोद सुनी हो जाती है
और मांग उजड़ जाती है
उस युद्ध में
जो किसी और की सत्ता, कुर्सी और चुनावी जीत के लिए लड़ा गया था।
पत्नी अपने शाहिद सीने के टुकड़े से कहती हैं:
मैं कितनी खुश थी, आंखों में कितने सपने थे
जिस सिंदूर से तूने मेरी मांग भरी थी,
आज "ऑपरेशन सिंदूर" ने
उसी सिंदूर को चिता की राख बना दिया।
तेरे स्पर्श, तेरी मुस्कान,
तेरा वादा — “जल्दी लौटूंगा”,
सब कुछ खाक हो गया
उन हुक्मरानों की नफ़रत में
जो हमें मोहरे समझते हैं — इंसान नहीं।
तू लौटा तो सही,
मगर बिना आवाज़ के,
तिरंगे की चुप्पी में लिपटा —
एक शहीद…
पर मेरे लिए तो बस एक टूटा सपना।
अब मेरी मांग में कोई रंग नहीं,
सिर्फ़ तेरी चिता की राख है,
जिसमें तेरी साँसें, तेरी यादें, तेरी अधूरी ज़िंदगी सिसकती है।
और अब मेरा बस एक अभिशाप है —
हे प्रकृति…
एक दिन ऐसा भी आए,
जब जिनकी कलम से युद्ध का फ़ैसला लिया जाता है,
उनके दरवाज़े पर भी तिरंगे में लिपटी उनके अपनों की लाश हो।
उनकी रसोई में भी
एक दिन वो निवाला अटक जाए
जो उन्होंने किसी युद्ध की जीत के जश्न में उठाया हो —
और उनके घरों में भी वो सन्नाटा गूंजे
जिसके दर्द को सिर्फ़ शहीद की माँ समझती है।
शायद तब...
शायद तभी वो जानेंगे
कि युद्ध सिर्फ़ रणभूमि में नहीं,
गरीब के आँगन में भी हर रोज़ लड़ा जाता है —
जहाँ हर जीत, एक चिता की आग से होकर गुज़रती है।
और हाँ,
क्यों कभी किसी अमीर, किसी सत्ता के वारिस,
या पूँजीपति के घर पैदा नहीं होता है वो शाहिद और देशभक्त,
जो सरहद पर जान देने जाता है?
नहीं...
वो सिर्फ़ आदेश देते हैं —
मरता हमेशा वही है
जिसके पास खोने को बस एक माँ होता है।
हर युद्ध में हारता हमेशा गरीब और निर्दोष है,
जीतता हमेशा पूंजीपति, धूर्त, शातिर, नफरतकारी, कुलीन और सत्ताधारी हीं है.....


मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद और हमारा संविधान


सांस्कृतिक साम्राज्यवाद एक ऐसा विचारधारात्मक दृष्टिकोण है, जिसमें एक समाज या संस्कृति अपनी मान्यताओं, मूल्यों, और जीवनशैली को अन्य समाजों पर थोपता है, विशेष रूप से उन समाजों पर जिनकी अपनी अलग पहचान और सांस्कृतिक धरोहर होती है। यह परंपरागत रूप से उन देशों या समाजों द्वारा लागू किया जाता है जिनके पास आर्थिक, सैन्य, या तकनीकी शक्ति होती है, और जो अपनी सांस्कृतिक शक्ति का विस्तार करते हैं। 


हमारा संविधान भारतीय समाज की विविधता को सम्मान देने का प्रयास करता है। भारतीय संविधान में सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का मूल विचार समाहित है। यह संविधान भारतीय समाज की बहुसांस्कृतिक प्रकृति को स्वीकार करता है और इसे संरक्षित करने का प्रावधान करता है। 

### सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का प्रभाव:

1. **संस्कृति की हानि**: सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का मुख्य प्रभाव समाजों की अपनी पारंपरिक संस्कृति और मान्यताओं पर पड़ता है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारतीय समाज पर भी देखा गया है, जहां कुछ भारतीय परंपराएं और रीति-रिवाज धीरे-धीरे समाप्त हो गए हैं या बदल गए हैं।

2. **वैश्वीकरण का प्रभाव**: वैश्वीकरण के साथ, पश्चिमी मीडिया, फैशन, खानपान, और जीवनशैली भारतीय समाज में प्रचलित हुई हैं। यह कहीं न कहीं भारतीय सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित कर रहा है। लेकिन भारतीय संविधान में यह सुनिश्चित किया गया है कि यह बदलाव एक स्वैच्छिक प्रक्रिया हो, न कि एक थोपे गए साम्राज्यवादी प्रभाव के रूप में।

3. **धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान**: भारतीय संविधान का उद्देश्य सभी धर्मों, भाषाओं, और संस्कृतियों के प्रति सम्मान दिखाना है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी संस्कृति दूसरों पर हावी न हो। अनुच्छेद 29 और 30 में सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों की रक्षा की गई है।

### संविधान का सांस्कृतिक साम्राज्यवाद से मुकाबला:

1. **धार्मिक स्वतंत्रता**: भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्थाओं के पालन और प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान करता है (अनुच्छेद 25-28)। यह सुनिश्चित करता है कि कोई एक धार्मिक या सांस्कृतिक विचारधारा पूरे समाज पर थोपे नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक को अपनी पहचान और विश्वास की स्वतंत्रता हो।

2. **सांस्कृतिक अधिकार**: अनुच्छेद 29 और 30 में भारतीय नागरिकों को अपने सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों का संरक्षण प्रदान किया गया है। यह प्रावधान किसी भी सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को रोकने में सहायक होता है, क्योंकि यह विविधता को बढ़ावा देता है और एकजुटता की भावना को प्रोत्साहित करता है।

3. **संविधान में विविधता का सम्मान**: भारत की विविधता को देखते हुए, संविधान ने हर नागरिक को अपनी संस्कृति और पहचान को बनाए रखने का अधिकार दिया है। सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ यह एक मजबूत रक्षात्मक ढांचा है।

### निष्कर्ष:
भारत का संविधान सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ एक प्रभावी सुरक्षा कवच है। यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय समाज अपनी विविधता और पारंपरिक संस्कृति को बनाए रखे, जबकि एक साथ वैश्वीकरण और आधुनिकता का स्वागत भी किया जा सके। संविधान के प्रावधान भारतीय संस्कृति और पहचान को संजोने और सम्मान देने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।

**भारत के मूल निवासी और संविधान में उनकी जगह**

भारत की जनसंख्या में विभिन्न जातियाँ, समुदाय, और समूह शामिल हैं, जिनमें कई जातियाँ और संस्कृतियाँ ऐसी हैं जो सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करती हैं। इन्हें "मूल निवासी" या "आदिवासी" कहा जाता है। आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, परंपराएँ, और जीवनशैली होती है, जो उन्हें अन्य समाजों से अलग करती है। भारतीय संविधान ने इन समुदायों के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान किए हैं। 

### **मूल निवासी (आदिवासी) की परिभाषा**:
भारत में "मूल निवासी" (या आदिवासी) ऐसे लोग होते हैं, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन काल से रहते आए हैं और जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा, और परंपराएँ होती हैं। इन्हें संविधान में **"जनजाति"** (Tribes) के रूप में पहचाना जाता है। भारतीय संविधान ने आदिवासियों के विशेष अधिकारों और संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए कुछ विशेष प्रावधानों की स्थापना की है।

### **संविधान में आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा**:
भारतीय संविधान ने आदिवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक स्थिति की सुरक्षा और उन्नति के लिए कई प्रावधान किए हैं, जिनका उद्देश्य उनके अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें मुख्यधारा में लाना है। ये प्रावधान निम्नलिखित हैं:

1. **अनुच्छेद 15 (भेदभाव से संरक्षण)**:
   अनुच्छेद 15 में यह प्रावधान है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। आदिवासी समुदाय के सदस्य इस प्रावधान से लाभान्वित होते हैं, क्योंकि इसका उद्देश्य उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ नहीं होने देना है।

2. **अनुच्छेद 46 (आदिवासी समुदायों की उन्नति)**:
   यह अनुच्छेद विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए है। इसमें कहा गया है कि राज्य उनके शिक्षा और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए विशेष प्रयास करेगा ताकि वे सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समृद्ध हो सकें। यह प्रावधान आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।

3. **अनुच्छेद 330 और 332 (चुनाव में प्रतिनिधित्व)**:
   आदिवासी समुदायों के लिए भारतीय संविधान में निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षित सीटें दी गई हैं। अनुच्छेद 330 के तहत लोकसभा में आदिवासी क्षेत्रों के लिए आरक्षित सीटें हैं, और अनुच्छेद 332 के तहत राज्य विधानसभा में भी आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटें निर्धारित की गई हैं। यह प्रावधान आदिवासियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।

4. **अनुच्छेद 244 और 244(1) (आदिवासी क्षेत्रों का विशेष प्रशासन)**:
   अनुच्छेद 244 और 244(1) में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। यह प्रावधान "आदिवासी क्षेत्रों" (Scheduled Areas) के प्रशासन के लिए राज्य सरकारों को विशेष अधिकार प्रदान करता है। इसमें "पंचायती राज" और "स्थानीय स्वशासन" संस्थाओं की स्थापना की बात भी की गई है, जो आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी नीतियों और योजनाओं को लागू करने में मदद करती हैं।

5. **आदिवासी क्षेत्रों का संरक्षण - अनुसूचित क्षेत्रों का निर्धारण**:
   भारतीय संविधान में **अनुसूचित क्षेत्रों** और **आदिवासी क्षेत्रों** के लिए विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) और अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) को विशेष सुरक्षा प्राप्त है। संविधान के अनुसार, सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि इन क्षेत्रों में आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन न हो और उनके संसाधनों का शोषण न किया जाए।

6. **संविधान (87वां संशोधन) अधिनियम, 2003**:
   इस संशोधन के द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में कुछ और सुधार लाए गए थे, जिसमें उनके पारंपरिक अधिकारों का सम्मान करते हुए उनके उत्थान के लिए नई योजनाओं का प्रस्ताव किया गया।

### **संविधान में आदिवासियों के लिए विशेष प्रावधानों के उद्देश्य**:
1. **सामाजिक न्याय और समानता**: आदिवासी समाज को मुख्यधारा में शामिल करने और उनके सामाजिक और आर्थिक समानता की दिशा में काम करना संविधान का मुख्य उद्देश्य है। ये प्रावधान आदिवासियों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने की दिशा में सहायक हैं।

2. **सांस्कृतिक संरक्षण**: संविधान आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर और पहचान के संरक्षण का प्रयास करता है। इसके अंतर्गत आदिवासियों को अपनी परंपराओं, भाषा, और रीति-रिवाजों को बनाए रखने की स्वतंत्रता मिलती है।

3. **आर्थिक विकास**: आदिवासी समुदायों के लिए विशेष आर्थिक योजनाओं का प्रावधान किया गया है ताकि वे गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन से बाहर निकल सकें। विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और आधारभूत संरचना में सुधार किया जाता है।

4. **भूमि अधिकार**: आदिवासियों की भूमि के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कानून बनाए गए हैं। जैसे, **भूमि अधिग्रहण कानून** में आदिवासियों की भूमि को बिना उनकी सहमति के न लेने की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, आदिवासी क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना और संसाधनों का शोषण आदिवासियों की सहमति से ही करने की शर्त रखी गई है।

### **निष्कर्ष**:
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए कई विशेष प्रावधान किए गए हैं ताकि उनकी पहचान, संस्कृति और अधिकारों का संरक्षण किया जा सके। हालांकि, आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा और उनका सशक्तिकरण एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसमें संविधान ने मार्गदर्शन और सुरक्षा प्रदान की है। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन न हो और उनका समाज में पूर्ण समावेश हो।

**भविष्य में भारत की राजनीति परिवर्तन की संभावनाएं**

भारत की राजनीति में भविष्य में कई प्रकार के परिवर्तन संभव हो सकते हैं, जिनका असर भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ेगा। ये परिवर्तन विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक कारकों द्वारा प्रेरित हो सकते हैं। भारतीय राजनीति में बदलाव की संभावनाओं को समझने के लिए कुछ मुख्य तत्वों पर विचार किया जा सकता है:

### 1. **लोकतंत्र और चुनाव प्रणाली में सुधार**:
   - **इलेक्टोरल रिफॉर्म्स**: भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है। चुनावों में पारदर्शिता बढ़ाने, पैसे के प्रभाव को कम करने, और चुनावी प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए सुधार हो सकते हैं। जैसे, **इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs)** की सुरक्षा और विश्वसनीयता को लेकर अधिक ध्यान दिया जा सकता है।
   - **राजनीतिक दलों के वित्तीय सुधार**: चुनावी चंदे के पारदर्शिता में सुधार और काले धन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। पार्टी फंडिंग के मुद्दे पर सुधार से चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता बढ़ सकती है।
   
### 2. **केंद्रीकरण और राज्य-संघ संबंध**:
   - **राज्य का अधिक सशक्तिकरण**: संघीय व्यवस्था में बदलाव और राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने की संभावना है। यह राज्यों को उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर नीतियां बनाने का अवसर देगा और वे केंद्र से ज्यादा स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकेंगे। विशेष रूप से **राज्य विधानसभा चुनावों** में राज्य-विशिष्ट मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण बन सकते हैं।
   - **केंद्र और राज्य के बीच बेहतर समन्वय**: यदि केंद्र और राज्यों के बीच अच्छे समन्वय को बढ़ावा मिलता है तो यह शासन प्रणाली को अधिक प्रभावी बना सकता है। भविष्य में केंद्र-राज्य संबंधों में अधिक लचीलेपन और सहयोग की उम्मीद की जा सकती है।

### 3. **सामाजिक और जातिगत समीकरणों में बदलाव**:
   - **सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष**: सामाजिक न्याय की दिशा में किए गए प्रयासों में बदलाव आ सकता है। विशेषकर **जातिवाद** और **धार्मिक असहमति** के मुद्दे को हल करने के लिए नए दृष्टिकोण सामने आ सकते हैं। भारत में सामाजिक और जातिगत समीकरणों का एक बड़ा प्रभाव राजनीतिक निर्णयों पर पड़ता है, और भविष्य में यह समीकरण समय के साथ विकसित हो सकते हैं।
   - **महिला और युवा सशक्तिकरण**: महिलाओं और युवाओं के बीच राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि हो सकती है। यह बदलाव पारंपरिक राजनीतिक संरचनाओं को चुनौती दे सकता है और महिलाओं की भूमिका बढ़ सकती है, साथ ही युवा वोटर्स का प्रभावी हस्तक्षेप भी राजनीतिक वातावरण को प्रभावित कर सकता है।

### 4. **नया नेतृत्व और विचारधाराएं**:
   - **नई पीढ़ी का नेतृत्व**: भारतीय राजनीति में भविष्य में नई पीढ़ी के नेताओं का उदय हो सकता है, जो पुराने नेताओं की तुलना में अधिक प्रौद्योगिकी-सक्षम और सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील होंगे। यह बदलाव पारंपरिक राजनीति से हटकर आधुनिक दृष्टिकोणों को जन्म दे सकता है।
   - **विचारधाराओं का विकास**: आने वाले समय में नए राजनीतिक विचार और आंदोलनों का जन्म हो सकता है जो भारत की विविधता और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर आधारित हो सकते हैं। इससे परंपरागत विचारधाराओं को चुनौती मिल सकती है।

### 5. **राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन और विरोधी ध्रुवीकरण**:
   - **गठबंधन राजनीति का भविष्य**: भारत की राजनीति में गठबंधन दलों की भूमिका भविष्य में बढ़ सकती है, जहां विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों के बीच समझौते और गठबंधन बन सकते हैं। हालांकि, यह भी संभव है कि बड़े दलों का एकदलीय शासन और मजबूत हो, जैसा कि वर्तमान में **भारतीय जनता पार्टी (BJP)** और **कांग्रेस** जैसे दलों के लिए देखा जा रहा है।
   - **विरोधी ध्रुवीकरण**: आने वाले समय में विपक्ष के दलों के बीच एकजुटता और सहयोग की संभावना है, जिससे मजबूत विपक्षी फ्रंट बन सकता है। हालांकि, अगर विरोधी दलों के बीच समन्वय नहीं होता है, तो राजनीति में अधिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक अस्थिरता हो सकती है।

### 6. **प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का प्रभाव**:
   - **सोशल मीडिया और राजनीति**: सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव भारतीय राजनीति में गहरे बदलाव ला सकता है। सोशल मीडिया के माध्यम से जनता के विचारों को सीधे नेताओं तक पहुँचने का अवसर मिल रहा है, जिससे पारंपरिक प्रचार-प्रसार के तरीकों में बदलाव आ सकता है।
   - **डिजिटल राजनीति**: डिजिटल भारत के तहत, प्रौद्योगिकी और डेटा का उपयोग अधिक सशक्त रूप में हो सकता है। इससे राजनीतिक फैसलों में पारदर्शिता और नागरिकों की सहभागिता बढ़ सकती है।

### 7. **आर्थिक और वैश्विक दृष्टिकोण से बदलाव**:
   - **आर्थिक नीति में परिवर्तन**: भारत की आर्थिक नीति में बदलाव आ सकता है, जिससे नए क्षेत्र जैसे डिजिटल अर्थव्यवस्था, हरित ऊर्जा, और नवाचार को बढ़ावा दिया जाएगा। यह आर्थिक विकास और राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित कर सकता है।
   - **वैश्विक संबंधों में बदलाव**: भारत की विदेशी नीति और वैश्विक रिश्तों में बदलाव हो सकता है, विशेष रूप से आसियान देशों, अमेरिका, और अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ। भारत की भूमिका वैश्विक मंच पर बढ़ सकती है, जो देश की आंतरिक राजनीति को भी प्रभावित करेगा।

### 8. **संविधान और न्यायपालिका में बदलाव**:
   - **संविधान में सुधार**: भारतीय संविधान में कुछ आवश्यक बदलाव किए जा सकते हैं, विशेषकर सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, और समानता के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए। संविधान की खामियों को सुधारने के लिए नए संशोधन हो सकते हैं।
   - **न्यायपालिका का सशक्तिकरण**: न्यायपालिका का और अधिक सशक्त होना भारतीय राजनीति में बदलाव ला सकता है, खासकर जब यह विधायिका और कार्यपालिका से असहमत होती है।


निष्कर्ष:
भारत की राजनीति में भविष्य में कई संभावित परिवर्तन हो सकते हैं, जो समाज के विभिन्न पहलुओं, वैश्विक प्रभाव, और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से जुड़े होंगे। हालांकि, किसी भी परिवर्तन के लिए समय और परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। भारतीय राजनीति का भविष्य जटिल और बहुसंख्यक हो सकता है, जहां कई विविधताएँ एक साथ विकसित होंगी, लेकिन इसके साथ ही समाज में समन्वय और समानता को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।


भारत और अमेरिका के बीच भविष्य की राजनीति:

भारत और अमेरिका के बीच संबंधों का भविष्य काफी दिलचस्प और विकासशील होगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच रणनीतिक, आर्थिक, और राजनीतिक सहयोग में लगातार वृद्धि हो रही है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में इन दोनों देशों के बीच सहयोग और प्रतिस्पर्धा का एक जटिल मिश्रण होगा, जो क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा। 

आइए, कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करते हैं, जो भविष्य में भारत और अमेरिका के रिश्तों को प्रभावित कर सकते हैं:
 1.आर्थिक और व्यापारिक सहयोग:
   - **व्यापारिक संबंधों में वृद्धि**: भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में बढ़ोतरी जारी रहेगी। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए **नई व्यापार नीति**, **नवीनतम प्रौद्योगिकी व्यापार** और **साझेदारी** पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। भारत अमेरिका के लिए एक प्रमुख आर्थिक साझेदार बनता जा रहा है, खासकर **हाई-टेक क्षेत्र**, **सूचना प्रौद्योगिकी**, और **हेल्थकेयर** में।
   - **डिजिटल और नवाचार**: डिजिटल अर्थव्यवस्था और नवाचार में सहयोग बढ़ सकता है, विशेष रूप से **आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)**, **ब्लॉकचेन**, **बिग डेटा**, और **क्लाउड कंप्यूटिंग** जैसे क्षेत्रों में। अमेरिका और भारत की युवा और तकनीकी रूप से प्रगति करने वाली आबादी को देखते हुए ये क्षेत्र दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच हो सकते हैं।
   - **व्यापार समझौतों पर बातचीत**: भविष्य में दोनों देशों के बीच व्यापार समझौतों और **टैरिफ** पर बातचीत और समझौते हो सकते हैं, जिससे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में वृद्धि हो।

### 2. **वैश्विक राजनीति में साझेदारी**:
   - **वैश्विक शक्तियों के साथ साझेदारी**: अमेरिका और भारत दोनों ही **चीन** को अपने समकक्ष एक प्रमुख प्रतिस्पर्धी मानते हैं। भविष्य में, दोनों देशों के बीच **आर्थिक** और **सैन्य सहयोग** चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बढ़ सकता है। **क्वाड (QUAD)**, जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, एक महत्वपूर्ण मंच है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बन रहा है।
   - **सुरक्षा सहयोग**: अमेरिका और भारत के बीच सुरक्षा सहयोग में वृद्धि हो सकती है। दोनों देशों के बीच सैन्य अभ्यास, हथियारों की आपूर्ति, और सामरिक साझेदारी में सुधार संभव है। **लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)** जैसे समझौते दोनों देशों के सैन्य संबंधों को और मजबूत करेंगे।
   - **संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों में सहयोग**: संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन (WTO), और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत और अमेरिका के बीच समन्वय बढ़ सकता है। भारत की स्थायी सदस्यता के लिए अमेरिका का समर्थन भी महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर **संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद** में।

### 3. **मौलिक मूल्य और लोकतंत्र**:
   - **लोकतांत्रिक साझेदारी**: भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक देश हैं, और उनके बीच एक सामान्य राजनीतिक मूल्य है। यह भविष्य में दोनों देशों के संबंधों को सुदृढ़ करने में मदद कर सकता है, खासकर जब दोनों देशों में लोकतंत्र, स्वतंत्रता, मानवाधिकार, और कानून के शासन जैसे मुद्दों पर समान दृष्टिकोण हो।
   - **आंतरिक राजनीति में बदलाव**: हालांकि दोनों देशों की राजनीतिक प्रणालियाँ अलग हैं, लेकिन भारत और अमेरिका में **राष्ट्रवाद** और **लोकतांत्रिक संघर्ष** के मुद्दे प्रासंगिक हो सकते हैं। दोनों देशों में आंतरिक राजनीति में बदलाव आने पर उनके बाहरी रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

### 4. **जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा**:
   - **सतत विकास और जलवायु परिवर्तन**: जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत और अमेरिका के बीच सहयोग बढ़ सकता है, क्योंकि दोनों देशों को इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए मिलकर काम करना होगा। अमेरिका के **पेरिस जलवायु समझौते** में वापसी के बाद, भारत और अमेरिका के बीच **हरित ऊर्जा** और **नवीकरणीय ऊर्जा** पर सहयोग की संभावना बढ़ी है।
   - **सामूहिक प्रयास**: दोनों देश मिलकर **क्लाइमेट चेंज** और **पर्यावरण संरक्षण** के लिए प्रयास कर सकते हैं, जैसे कि **सौर ऊर्जा**, **हवा ऊर्जा**, और अन्य हरित प्रौद्योगिकियों में सहयोग।

### 5. **सांस्कृतिक और शिक्षा में संबंध**:
   - **सांस्कृतिक संबंध**: भारत और अमेरिका के बीच सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधों में भी वृद्धि हो सकती है। भारतीय छात्रों का अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक बड़ा क्षेत्र है, जो दोनों देशों के लिए सकारात्मक है। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान, फिल्म, कला, और साहित्य के क्षेत्र में भी सहयोग हो सकता है।
   - **समाजवाद और विविधता**: भारत और अमेरिका दोनों ही समाज में विविधता को स्वीकार करते हैं, और इसके कारण दोनों देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों में समृद्धि हो सकती है। 

### 6. **चीन और रूस के साथ प्रतिस्पर्धा**:
   - **चीन का मुकाबला**: चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत और अमेरिका का सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो सकता है। दोनों देशों को सामरिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करना होगा। 
   - **रूस के साथ रिश्ते**: हालांकि रूस और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं, लेकिन अमेरिका के साथ मजबूत होने वाले रिश्ते भविष्य में **भारत-रूस संबंधों** को प्रभावित कर सकते हैं। रूस के साथ सैन्य सहयोग और व्यापारिक समझौतों में भी बदलाव हो सकता है।

### 7. **सुरक्षा और साइबर राजनीति**:
   - **साइबर सुरक्षा**: दोनों देशों के बीच **साइबर सुरक्षा** और **सूचना प्रौद्योगिकी** के क्षेत्र में सहयोग बढ़ सकता है, क्योंकि साइबर अपराध और राष्ट्रीय सुरक्षा की नई चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। साइबर सुरक्षा, डेटा संरक्षण, और आतंकवाद से निपटने के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा।
   
### निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका के बीच भविष्य में राजनीतिक रिश्ते मजबूत हो सकते हैं, विशेषकर वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोग, सुरक्षा, व्यापार, और अन्य सामरिक पहलुओं में। हालांकि दोनों देशों के बीच कुछ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनके साझा हित और समृद्धि के लिए मिलकर काम करने की संभावना अधिक है। भारत और अमेरिका के रिश्तों में वृद्धि से न केवल इन दोनों देशों को लाभ होगा, बल्कि वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक विकास और समृद्धि के लिए भी यह महत्वपूर्ण होगा।

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डॉ. लाल रत्नाकर एक प्रसिद्ध चित्रकार और शिक्षाविद् हैं, जो गाजियाबाद के एम.एम.एच. कॉलेज में चित्रकला विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी कला मुख्य रूप से भारतीय नारी के विविध रूपों और उनकी भावनाओं को केंद्र में रखकर रची गई है। उनके चित्रों में नारी को सृजन का प्रतीक माना गया है, जिसमें वह न केवल सुंदरता और श्रृंगार का चित्रण करते हैं, बल्कि उनकी व्यथा, संघर्ष और ग्रामीण जीवन की सादगी को भी उजागर करते हैं।

डॉ. रत्नाकर के चित्रों की खासियत यह है कि वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं से गहरे जुड़े हैं। उनके कार्यों में ग्रामीण परिवेश और नारी के आभूषणों व पहनावे का विशेष चित्रण देखने को मिलता है, जो सामाजिक संदर्भों को भी दर्शाता है। वे स्वयं कहते हैं कि नारी उनके लिए सृजन की सबसे सरल और प्रभावशाली अभिव्यक्ति है, और उनके चित्र इस भावना को रंगों और रेखाओं के माध्यम से जीवंत करते हैं। उनकी कला में प्रकृति, पशु-पक्षी और पुरुषों का चित्रण भी कभी-कभी देखने को मिलता है, लेकिन नारी उनकी रचनाओं का मुख्य आधार रही है।

उनके चित्रों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि वे अपनी ग्रामीण पृष्ठभूमि से गहरे प्रभावित हैं, और उनकी अंतर्दृष्टि उनकी कला में समय के साथ परिपक्व विचार प्रक्रिया के रूप में झलकती है। उनकी प्रदर्शनियों में अक्सर नारी जीवन की बहुआयामी छवियां प्रस्तुत की जाती हैं, जो दर्शकों को भावनात्मक और दार्शनिक स्तर पर प्रभावित करती हैं।

क्या आप उनके किसी विशिष्ट चित्र या प्रदर्शनी के बारे में अधिक जानना चाहते हैं?




 

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

दयानन्द पांडेय ; ब्राह्मिणवादी विचारों का सजग चेहरा

 भस्मासुर बनाने और निपटाने में भाजपा की कैफ़ियत 

-दयानंद पांडेय 

अरविंद केजरीवाल को भस्मासुर बनाने वाली भाजपा ही थी। यह बात कम लोग जानते हैं। अलग बात है कि इस भस्मासुर को भस्म करने में भाजपा को बहुत समय लग गया। लेकिन ज़रा रुकिए। यह एक फ़ोटो पहले देखिए फिर आगे बात करते हैं। भाजपा को जितना लोग समझते हैं , उतनी है नहीं। एक पुरानी कहावत है कि यह आदमी जितना दीखता है , उस से ज़्यादा धरती के भीतर है। भाजपा वही है। धरती के भीतर कुछ ज़्यादा ही है। भाजपा को  कांटे से कांटा निकालने का पुराना अभ्यास है। धैर्य और टाइमिंग का भी। याद कीजिए कि कांग्रेस को अकेले दम पराजित करना जनसंघ के लिए भी आसान नहीं था। भाजपा के लिए भी नहीं थी। बहुत कंप्रोमाइज और अपमान सही हैं भाजपा ने। छुआछूत का सामना किया है। तब यहां तक पहुंची है। इमरजेंसी के पहले ही जनसंघ ने बहुत आहिस्ता से जय प्रकाश नारायण को अपने पक्ष में मोहित कर लिया। जय प्रकाश नारायण की लंबी सेवा की। संघ परदे के पीछे से उपस्थित था। इस के पहले जनसंघ ने लोहिया को भी साध लिया था। उत्तर प्रदेश में लोहिया पुल से होते हुए ही संविद सरकार बनी। दो बार बनी और जनसंघ उस में शामिल था। चरण सिंह मुख्य मंत्री और जनसंघ के राम प्रकाश गुप्त उप मुख्य मंत्री। पर यह लंबी कहानी नहीं बनी। 

इंदिरा गांधी की तानाशाही से आजिज जय प्रकाश नारायण के साथ जनसंघ पूरी ताक़त से खड़ी हो गई थी। संघ का कवच कुण्डल लिए हुए। एक फ़ोटो इंडियन एक्सप्रेस में छपी थी। पुलिस जय प्रकाश नारायण पर लाठियां बरसा रही है। और जय प्रकाश नारायण पर नानाजी देशमुख बिलकुल छाता बन कर लेटे हुए हैं। पुलिस की लाठियां अपने सीने पर खाते हुए। भूल से भी जो कोई एक लाठी जय प्रकाश नारायण पर पड़ गई होती तो जय प्रकाश नारायण वहीं प्राण छोड़ देते। उन की देह में तब कुछ था ही नहीं। खड़े हो कर भाषण देने लायक़ नहीं थे। कृशकाय देह किसी तरह चल लेती थी। बहुत ज़ोर से बोल नहीं पाते थे। पर इंदिरा गांधी की नाक में दम कर रखा था। इंदिरा ने जब कोई रास्ता नहीं देखा तो जय प्रकाश नारायण को सी आई ए एजेंट कहना शुरू कर दिया। पर राजनारायण की याचिका पर जस्टिस जगमोहन सिनहा ने जनसंघ की लंबी लड़ाई को बहुत छोटा कर दिया। इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित किया। 

इंदिरा ने फिर से चुनाव लड़ने के बजाय तानाशाही की आदत के चलते रातोरात इमरजेंसी लगा दी। यह काला इतिहास है और सभी इस से परिचित हैं। जय प्रकाश नारायण ही नहीं बहुत से लोग जेलों में भर दिए गए। ख़ूब कूटे गए। हज़ारों लोगों के पृष्ठ भाग में लाल मिर्च , लाठी सब हुए। भारी अत्याचार हुए। इस में जनसंघ और संघ के लोग सर्वाधिक थे। भयभीत हो कर सर्वदा नकली संघर्ष के योद्धा वामपंथी तो इमरजेंसी के पक्ष में खड़े हो गए। विभिन्न जेलों में जनसंघियों की दोस्ती समाजवादियों से प्रगाढ़ हुई। इमरजेंसी ख़त्म होने और जेल से बाहर आने के बाद जनता पार्टी बनी। जनसंघ इस में महत्वपूर्ण रूप से उपस्थित हुई। 1977 के चुनाव में कांग्रेस का सफाया हुआ। जनता सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी , लालकृष्ण आडवाणी विदेश और सूचना प्रसारण मंत्री हुए। चरण सिंह की महत्वाकांक्षा और अराजकता ने मोरारजी देसाई सरकार का ढाई बरस में ही पतन करवा दिया। चरण सिंह खुद प्रधान मंत्री बने। बाद में इंदिरा कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। इंदिरा की हत्या हुई। राजीव प्रधानमंत्री बने। बोफोर्स की हवा में राजीव गांधी उड़ गए। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मंत्री बने। दिलचस्प यह कि भाजपा और वामपंथियों के संयुक्त समर्थन से बने। उत्तर प्रदेश में तभी भाजपा के समर्थन से मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बने। गोया भाजपा न विश्वनाथ प्रताप सिंह के लिए सांप्रदायिक थी , न मुलायम के लिए। फिर जैसे इन दिनों भाजपा को रोकने का फ़ैशन और बीमारी है , उन दिनों कांग्रेस को रोकने का फ़ैशन और बीमारी थी। पर भाजपा अपना लक्ष्य साधने में लगी रही। 

आडवाणी की रथ यात्रा निकली और बिहार में रोक कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। विरोध में भाजपा ने केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से और उत्तर प्रदेश में मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया। केंद्र में राजीव गांधी सक्रिय हुए। कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधान मंत्री बने। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जगह कांग्रेस का समर्थन प्राप्त कर मुलायम मुख्यमंत्री बने रहे। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपनी बरबादी का पहला तीर तभी लिया। फिर निरंतर लेती ही गई। इतना कि अब कोई और तीर लेने लायक़ नहीं रही। ख़ैर राजीव गांधी की हत्या , नरसिंहा राव का प्रधान मंत्री बनना। फिर अटल बिहारी वाजपेयी का एन डी ए का प्रधान मंत्री बनना। देवगौड़ा , गुजराल आदि भी आए गए। अटल के शाइनिंग इण्डिया के गर्भपात के  बाद मनमोहन सिंह का प्रधान मंत्री बनना सब कुछ एक सिलसिला सा है। इस के पहले की बात आगे की कहूं एक ब्रेकर है बीच में। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधान मंत्री थे तब बड़े यत्न से उन्हों ने एक ममता बनर्जी को कांग्रेस से निकाल कर उपस्थित किया। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का कांटा निकालने के लिए। ममता बनर्जी की मां अटल बिहारी वाजपेयी से बहुत बड़ी नहीं थीं , छोटी ही रही होंगी पर ममता का ईगो मसाज करने के लिए ममता बनर्जी के घर जा कर सार्वजनिक रूप से उन की मां का चरण स्पर्श कर रहे थे। क्या तो पश्चिम बंगाल में वामपंथियों को दुरुस्त करने के लिए। भाजपा सीधे वामपंथियों से लोहा लेने में अक्षम पा रही थी। संयोग से नंदीग्राम और सिंगूर हो गया। भाजपा ने ममता को अपने कंधे पर बैठा लिया। गोया भाजपा हाथी हो और ममता शिकारी। वामपंथियों का शिकार करने में ममता बनर्जी सफल हो गईं। भाजपा ने कांटे से कांटा निकाल दिया था। पर ममता बनर्जी सफल हो कर भस्मासुर बन गईं। भाजपा को ही आंख दिखाने लगीं। भाजपा को ही भस्म करने लगी हैं। पर भूल गई हैं भाजपा अपना लक्ष्य पाने के लिए लंबी रेस की क़ायल है। हड़बड़ी नहीं करती। 

ख़ैर अब आगे के दिनों में कांग्रेस को दिल्ली से भी उखाड़ना मुश्किल लगने लगा भाजपा को। जैसे पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम , सिंगूर हुआ था , दिल्ली में टू जी , कोयला , आदि शुरू हो गया। भाजपा फिर सक्रिय हुई। जैसे कभी जनसंघ के समय जे पी मिले थे जनसंघ को , भाजपा ने महाराष्ट्र से अन्ना हजारे खोजा। दिल्ली में रामलीला मैदान सज गया। माहौल कांग्रेस के ख़िलाफ़ बन गया। मिट्टी तैयार थी। भाजपा को अपने ही बीच से एक कुम्हार मिल गया नरेंद्र मोदी। सूपड़ा साफ़ हो गया कांग्रेस का। मोदी प्रधान मंत्री। अब अन्ना आंदोलन के गर्भ से निकले लोगों में एक महत्वाकांक्षी अरविंद केजरीवाल निकला। महत्वाकांक्षी कई थे। किरन बेदी , प्रशांत भूषण , योगेंद्र यादव , आशुतोष , कुमार विश्वास आदि इत्यादि। अन्ना रोकते रहे सब को कि राजनीति कीचड़ है। पर कोई नहीं माना। अन्ना को लात मार कर सब सत्ता पिपासा में लग गए। अरविंद केजरीवाल सब से आगे निकल गया। कांग्रेस की शीला दीक्षित का कांटा निकालने के लिए भाजपा ने अरविंद केजरीवाल की पतंग उड़ा दी। अब जीत के बाद केजरीवाल भी भस्मासुर बन कर उपस्थित था। कमीनगी में भाजपा - कांग्रेस सहित अन्य अनेक राजनीतिक दलों को पानी पिलाते हुए सत्ता का घोड़ा दौड़ाने में अव्वल निकल गया। भस्मासुर बन गया। पर सत्ता और दौलत बहुत जल्दी आदमी को पतन के द्वार पर उपस्थित कर देती है। तानाशाह , झूठा , भ्रष्टाचारी और मक्कार बना देती है। फिर अरविंद केजरीवाल तो भस्मासुर बन गया। पर भ्रष्टाचार की बेल लताएं इस क़दर इस भस्मासुर पर चढ़ गईं , दिल्ली हमारी है कहने की ज़िद इस क़दर चढ़ गई कि मुगलेआज़म का सलीम जैसे कहता है , अनारकली हमारी है की धुन में बदल गई। और दिल्ली वालों का क्या है। उन को जब पता चला कि मुफ्त की सारी रेवड़ियां भाजपा का मोदी भी देगा , पलट गए। मोदी ने कांटे से कांटा निकाल कर अरविंद केजरीवाल को कहीं का नहीं छोड़ा। कंगाल बना दिया। अरविंद केजरीवाल नाम का भस्मासुर निपट गया है। राजनीति शंकर जी का नृत्य नहीं है। सो भस्मासुर को निपटाने में थोड़ा वक़्त तो लगता है। बतर्ज़ हस्तीमल हस्ती प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है। तो क्या अब अगला नंबर पश्चिम बंगाल का है। कभी जो लोग वामपंथियों की दादागिरी से भयाक्रांत थे , अब ममता बनर्जी की दीदीगिरी से वही लोग त्राहिमाम करने लगे हैं। भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की तरह पश्चिम बंगाल में भी धूल चाट गई है। पर अयोध्या के मिल्कीपुर में आज सपा को चारो खाने चित्त कर आगे की राह खोल ली है। बाक़ी उपचुनाव में भी ठीक कर लिया था। आप ने गौर किया कि बात - बेबात भड़कने वाली ममता अप्रत्याशित रूप से इन दिनों ख़ामोशी का अभ्यास करने लगी हैं। तो क्या मुफ़्त में ? 

इस लिए कि शिकारी अपने शिकार पर है। दबे पांव। भस्मासुर को नृत्य के लिए न्यौता देने की तैयारी में है। दिल्ली विजय की ख़ुशी में पार्टी कार्यालय के भाषण में मोदी ने एक मूर्ख और एक धूर्त का ज़िक्र किया है। धूर्त अरविंद केजरीवाल है और मूर्ख राहुल गांधी। धूर्त निपट चुका है। कांग्रेस को चाहिए कि जल्दी से जल्दी अपने मूर्ख से छुट्टी ले। तभी उस का कल्याण है। लेकिन कांग्रेस ऐसा करेगी , मुझे बिलकुल यक़ीन नहीं है। 

बहरहाल यह जो फ़ोटो प्रस्तुत है यह मेरी खोज से नहीं आई है। कांग्रेस के पेड कलमकार सौरभ वाजपेयी खोज कर लाए हैं। कांग्रेस का शोकगीत गाने के लिए , अरविंद केजरीवाल की लानत-मलामत करने के लिए। यह फ़ोटो वह पहले भी क्यों नहीं ले कर उपस्थित हुए। फ़ोटो में तब भाजपा के तब के आचार्य और वोटिंग प्राइम मिनिस्टर लालकृष्ण आडवाणी हैं। उन के आजू - बाजू सुषमा स्वराज , अरुण जेटली। एक तरफ मुरली मनोहर जोशी , वेंकैया , जसवंत सिंह , राजनाथ सिंह भी हैं। दूसरी तरफ अन्ना हजारे , अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी हैं। फ़ोटो में अरविंद केजरीवाल , किरन बेदी से किसी रामायण , महाभारत की कथा पर तो नहीं बात कर रहे। जाहिर है कांग्रेस को ध्वस्त करने की रणनीति पर ही बात केंद्रित हैं। इस फ़ोटो में नरेंद्र मोदी का दूर - दूर तक कोई अता - पता नहीं है। क्यों कि उन का पता तब गुजरािचारो का त के मुख्य मंत्री का था। प्रधान मंत्री पद के लिए तब उन की कोई चर्चा भी नहीं थी। बाक़ी कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। क्यों कि भाजपा वन मैन आर्मी या डायनेस्टी की गुफा में जाने से अभी तक वंचित है। लेकिन ढील दे कर पतंग काटने में चैंपियन है। इस ढील का सर्वाधिक ख़ामियाजा कांग्रेस के हिस्से आता है। पर कांग्रेस को इस में आनंद बहुत आता है। कोई करे भी तो क्या करे !